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________________ कृतियाँ ' | ३१३ भाव कहते हैं ।" इनके कवि की चर्चा करते हुए यह स्पष्ट किया है कि निमित्तापेक्षा द्रव्यकर्म को सौदयिक भावों का कर्ता कहा गया है। इसी प्रकार जीवभावों को स्वकर्म कर्ता कहा गया है, यह सब व्यवहार कथन है | निश्चय से जीव जीवभावों के तथा कर्म कर्मपरिणामों के अपनेअपने परिणाम के कर्ता हैं । ग्रतः इसतरह से जीव कर्म का अकर्ता है । वास्तव में षट्कारकरूप व्यवस्था प्रत्येक अन्य में अपनी-अपनी (विद्यमान) होने से उन्हें कारकान्तरों की अपेक्षा ही नहीं है। अतः यह निश्चय करना चाहिए कि न जीव कर्म का कर्ता है और न कर्म जीव का कर्ता है। वहीं यह शंका भी निर्मूल है कि अन्य का दिया हुआ कल कोई अन्य भोगता हैं। सिद्धांततः श्रात्मा स्वयं मोह रागद्र पादि करता है तथा उस काल में यहाँ अवस्थित कर्म स्वयं ही कर्मभावरूप परिणमन करते हैं तथा एक क्षेत्रावगाह सम्बन्धरूप होते हैं । इस कथन की पुष्टि हेतु उदाहरण भी दिया है कि जिसप्रकार अपने योग्य चन्द्र सूर्य के प्रकाश की प्राप्ति होने पर संध्या, बादल, इन्द्रधनुष प्रभामण्डल आदिरूप स्वयमेव अन्यकर्ता की पेक्षा बिना पुद्गल स्कंध विभिन्न परिणामों को करते हैं, उसीप्रकार योग्य जीवपरिणामों को प्राप्त कर पुद्गलवर्गणाएं कर्मरूप परिणामों को करती हैं। व्यवहार कथन में जो परस्पर कर्ता भोक्ता यादि कहा जाता है, उससे वस्तुस्वरूप में अंतर नहीं पड़ता एवं विरोध पैदा नहीं होता। इस प्रकार कर्तृत्व व भोक्तत्व गुण का उपसंहार करते हुए प्रभुत्व गुण का कथन प्रारम्भ किया । वहाँ लिखा है कि इस प्रकार प्रगट प्रभुत्व शक्ति से जिसने कर्तृत्व व भोक्तत्व के व्यवहार का अधिकार ग्रहण किया है, ऐसा आत्मा मोहाच्छादित तथा विपरीत अभिप्राय वाला होने से संसार में ही परिभ्रमण करता है । वही आत्मा जिनोपदेश द्वारा मार्ग को प्राप्तकर उपशांत तथा क्षीणमोही होता है। वह ज्ञानानुमार्गचारी होकर निर्वाणपुर को प्राप्त होता है । अंत में जीवद्रव्यास्तिकाय का व्याख्यान समाप्त करते हुए लिखा है कि जीव के एक, दो से लेकर दस तक भेद किये हैं । इनमें कर्मबद्ध संसारी जीवों का छह दिशाओं में गमन होता है तथा मुक्त जीवों १. समयव्याख्या, गा. ५३ से ५६ तक । वहीं, गा. ५७ से ६५ तक । वही, गा. ६६ ६० तक |
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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