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________________ कृतियाँ । | ३११ उत्पाद में असत् का प्रादुर्भाव तथा विनाश में सत् के विनाश का निध किया है । द्रव्य (भाव), गण तथा पर्याय के निरूपण में छह द्रव्यों को भाव कहा तथा उनके गुणों व पर्यायों की चर्चा की। प्रसंगवशात् चेतना के प्रकार भी लिखे । बहाँ ज्ञानानुभूतिरूप शुद्धचेतना, कार्यानुभुतिरूप तथा कर्मफलानुभूति रूप अशुद्धचेतना इतलाई। चैतन्य का अनुसरण करनेवाला उपयोग है । उसके सविकल्प तथा निविकप दो भेद बताये । पश्चात भाव का नाश तथा प्रभाव का उत्पाद होने का निरोध किया। अव्य के कथंचित व्यय व नाशपने को बताकर उसके सदेव अविनष्टपने और अनुत्पन्नपने की सिद्धि की । ध्रु बता के पक्ष से सा का अधिनाग और असत् का अनुत्पाद निरूपित किया । सिद्धत्व पर्याय की उत्पत्ति, असत् की उत्पत्ति नहीं है, यह भी स्पष्ट किया । यहाँ प्राप्त, अागम, सम्यक अनुमान तथा स्वानुभव इन चार प्रकार के प्रमाणों का निर्देश किया है। मुख्यगौण की व्यवस्था द्वारा बस्तु स्वरूप को व्याख्या की जाती है. वहाँ बिरोध में भी विरोध न होना अनेकांत का प्रसाद है। - ऐसा घोषित किया है । इसप्रकार छह द्रव्यों की सामान्य विवेचना की। तत्पश्चात् छह द्रव्यों में पांच के अस्तिकायपना तथा काल द्रव्य के अस्तिकाय न होने पर भी अर्थप ना सिद्ध किया। आगे निश्चय व्यवहार काल का स्वरूप निदेश किया तथा व्यवहार काल का कथंचित् पराश्रयपना और उसका अस्तित्व अतितीक्ष्ण दृष्टिग्राह्य लिखा। यहाँ प्रथम पीठिका बंधाधिकार समाप्त हुआ। पश्चात् द्वितीय अधिकार में जीवास्तिकाय का विशेष व्याख्यान करते हुए आत्मा को निश्चय-व्यवहार दृष्टि से जीब, रेतयिता, उपयोगमयी, प्रभु, कर्ता, भोना बताया, उसके प्रमाण, अमूर्त और कर्म संयुक्तपने का विवेचन किया । वहाँ प्रथम मुक्तावस्थारूप प्रात्मा का निरुपाधि स्वरूप दर्शाकर उसके निरुपाधि ज्ञान, दर्शन और मुख का समर्थन किया। साथ ही अनेक युलियों से सर्वज्ञ की सत्ता सिद्ध की है, किन्तु अध्यात्मशास्त्र होने से उक्त प्रकरण का विशेष विस्तार नहीं किया है। दूसरे संसारी जीवों के भावप्राण तथा द्रव्यप्राणों का वर्णन किया है। प्रात्मा का देहप्रमाणपना इष्टांत द्वारा सिद्ध किया है । आत्मा का देह से देहान्तर होने १. सम्यन्याच्या, टोका गा. १२ से १६ नमः । ३ समगव्याख्या, भा १७ से २१ तक । ३. वही, गा. १६ से २६ तक |
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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