________________
३१५
: आचार्य अमृततन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
है । दूसरे उनी वाणी को जीव समूह के लिए निर्वाध-विशुद्ध बास्मतन्व की उपलब्धि का उपाय कहने वाली हितकारी वाणी कहा है ! तीसरे परमार्थ रसिकजनों के मन को हरण करने वाली मधुर तथा विशद वाणी के उपदेष्टा जिनेन्द्रों का बहुमान किया है। उपदेश की प्रामाणिकता तथा उद्देश्य को बताते हुए समय शब्द का अर्थ 'पागम'' बताया है । पंचास्तिकाय को ही लोक स्वरूप निरूपित किया है। समय शब्द के शब्द, ज्ञान तथा अर्थसमय ये तीन प्रकार कहे हैं। वहां पंचास्किाब के कथन या शास्त्राम्ह निरूपण को शब्दसमय, मिथ्यात्व के उदय के नाश होनेपर पंचास्तिकाय के सम्बकज्ञान को ज्ञानसमय तथा कथन के निमित्त से ज्ञान में जात पदार्थों को अर्थसमय कहा है। अर्थसमय के लोक तथा अलोक रूप दो भेद किये हैं। पंचारितकाय की विशेष संज्ञा, सामान्य विशेषरूप अस्तित्व तथा कायत्व का विवेचन किया है । ' प्रसंगोपाल जिनेन्द्र कथित द्रव्यार्थिक तथा पर्यायाथिक इन दो प्रकार के नयों का सापेक्ष उल्लेख किया तथा पर्यायाथिकनयापेक्षा जिसे कथंचित् अन्यमय कहा, द्रव्याथिक नयापेक्षा 'उसही अनन्यमय कहा है: कापने को सिद्धि हेतु उनमें अणुमहानपना सिद्ध किया। कालागु के अस्तित्व है, परन्तु कायत्व नहीं है, इसको तथा शेष द्रव्यों के अस्तित्व व कायत्व को युक्तियों द्वारा सिद्ध किया है। उक्त ५ नास्तिकाय नथा शेष द्रव्यों के अस्तित्व व कायत्व को भी यक्तियों द्वारा सिद्ध किया है । अस्तित्व का स्वरूप कथन करके सत्ता और द्रव्य को अर्थात रपना मानने का खण्डन किया है । उक्त निरूपण में सूक्ष्म तथा तीक्षण तकों का प्रयोग किया है । तव्य के तीन लक्षणों का स्पष्टीकरण किया, जिसमें, द्रव्य का लक्ष " सत्", "उत्पादव्ययत्रीब्य" तथा "गुणपर्याय रूप इन तीन लक्षणों का विवेचन क्रिया है । प्राय नय दृष्टि से द्रव्य का स्वरूप दर्शाया तथा द्रव्याथिकानवापेक्षा द्रव्य को ध्रुब तथा उत्पाद-व्यय रहित लिखा और पर्यायाधिकनयापेक्षा द्रव्य को उत्पाद व्यय वाला ही कहा है, ध्रुव नहीं कहा है । द्रव्य में पर्याय का कथंचित् अभेदपना और द्रव्य एवं गुणों में भी कथंचित् अभेदपना दर्शाया है । यहाँ द्रव्यादेशवशात् सप्तभंगी न्याय का कथन करते हुए उसे सर्वथापने का निषेधक, अनेकांत का द्योतक तथा स्यात् पद को कथंचित् अर्थवाची अव्ययरूप से प्रयुक्त लिखा है | आगे
१. भमयमाख्या टीया - गा. १ से 5 तुक । २. वही गा. ४ से १५ तक ।