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________________ २६८ । | आचार्य अमृतचन्द्र व्यक्तित्व एवं कर्तृच अनंत संसारी भी है ।" अब बतलाते हैं जो मुनि सूत्रज्ञाता, शांत परिणामी तथा तपस्वी भी है परन्तु वह यदि लौकिक जनों का संपर्क नहीं छोड़ता तो वह संयमी नहीं है। लौकिक का लक्षण स्पष्ट करते हुए बताया है कि जो निर्मन्थ दीक्षाबारी, संयमी, तपस्वी भी है परन्तु बह लौकिक कार्यों सहित प्रवर्तता है. वह मुनि भी लौकिक ही है । इस तरह यह अधिकार भी समाप्त हुआ । आगे उक्त विभाग के चतुर्थ प्रकरण पंचरत्न प्रज्ञापन अधिकार को प्रारम्भ करते हुए सर्वप्रथम संसारतत्त्व का उद्घाटन किया है। वहाँ कहा हैं कि जो भले ही द्रव्यलिंग से नग्नरूपधारी हो परन्तु " बस्तुस्वरूप ऐसा ही है" ऐसा अस्खलित श्रद्धानी नहीं है, वह संसारतत्त्व है, वह आगामी पंचपरावर्तनों में परिभ्रमण करेगा । पुनः मोक्षतत्त्व का उद्घाटन करते हुए लिखा है कि जो यथार्थं तत्वश्रद्धानी होने से प्रशांतात्मा है, विपरीत आचरण से रहित है, ऐसा श्रमण संसार में अधिक काल तक नहीं रहता अर्थात् शीघ्र मोक्ष को पाता है । अब मोक्ष तत्त्व के साधनतत्त्व का भी अभिनंदन करते हैं कि शुद्धोपयोगी के ही श्रमणपना, दर्शन ज्ञान तथा निर्वाण होता है । उसी के सिद्धदशा प्रगटती है अतः शुद्धोपयोगी साधनतत्व है । अंत में शिष्य जन को शास्त्र के फल में लगाते हुए लिखा है कि जो साकार अनाकार चर्या से युक्त वर्तता हुआ प्रवचनसार के उपदेश को जानता है, वह अल्पकाल में ही प्रवचन के सारभूत भगवान् आत्मा को प्राप्त करना है । यहाँ तृतीय श्रुतस्कंध चरणानुयोग सूचित त्रुलिका समाप्त होती है । इस ग्रन्थ की टीका का वैशिष्ट्य यह भी है कि उक्त ग्रन्थ की टीका समाप्ति के पश्चात् टीकाकार ने एक परिशिष्ट जोड़ा है जिसमें "आत्मा कौन है ?" और "उसे कैसे प्राप्त किया जाता है ? इन दोनों का उत्तर साररूपेण पुनः देते हुए लिखा है कि आत्मा वास्तव में चैतन्य सामान्य से व्याप्त अनंतधर्मा का अधिष्ठाता है, एक द्रव्य रूप है । अनंतधर्मों में व्याप्त अनंत नात्मक भी है, तथापि वे अनंत धर्म एक शुतज्ञान से १. वहीं, गाथा २५ से २६७ तक प्रवचनसार, तत्त्वप्रदीपिका गाथा २६ से २७० तक | बही गाथा २७१ मे २७५ तक ।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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