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________________ २६२ । | आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व अनव स्थिति बतलाई गई है । जीव मो अनवस्थितपने या कारण बतलाया है तथा संसार में बध होने का कारण आदि भी स्पष्ट किया है। परमार्थ से आत्मा के द्रव्यकर्म का अकविना है। आत्मा जिस स्वरूप परिणमित होता है वह चेतना ही है जो तीन प्रकार की है ज्ञानचेतना, कर्मचेतना तथा कर्मफल चेतना । उक्त तीनों चेतनाओं का स्वरूप भी स्पष्ट किया गया है । अत में ज्ञयतत्व हाप ... उक्त ज्ञयत्व को प्राप्त प्रात्मा की शुद्धता के निश्चय से ज्ञानतत्व की सिद्धि होती है - उससे प्रात्मोपलब्धि होती है, उसका अभिनंदन करते हुए उक्त अधिकार समाप्त किया है। इसी विभाग का द्वितीय अधिकार द्रव्य विशेष अधिकार है । इसमें द्रव्य के जीव तथा अजीबपने का निश्चय किया है । चेतना-उपयोगमय को जीव तथा पुद्गल च्यादि अचेतन द्रव्यों को अजीव कहा है। द्रव्य के लोक-अलोक का अंतर, क्रिया तथा मानवरूप से द्रव्य में विशेषता इत्यादि बातों पर विचार किया है। परिणाममात्र लक्षणवाला भाव है तथा परिस्पंदलक्षणवाली क्रिया है। जीव तथा पुद्गल में भाववी तथा क्रियावती शक्ति दोनों पाई जाती हैं। शेष द्रव्यों में केवल भाववी शक्ति होती है। गुणभेद के कारण द्रश्यवेद भी किया जाता है । मूतं अमूर्त का लक्षण करते हुए इन्द्रियगाय को मूर्त तथा अमूर्त द्रव्यों के गुण अमूर्त होते हैं - इस तरह निरूपण किया है। पुद्गलद्रव्य मूर्त है उसके गुण स्पर्श, रस, गंध तथा वर्ण है। विविध प्रकार के शब्द भी पुद्गल की हो पर्याय हैं। पर्याय का लक्षण अनित्यत्व है तथा गुण का लक्षण नित्यत्व है। अमूर्त द्रव्यों के गुणों का भी सविस्तार वर्णन किया है ।' आगे द्रव्य का प्रदेशवत्व रूप भेद भी दिखावा है । प्रदेशो-अनदेशी द्रव्यों का निवासी तथा अप्रदेशवत्व तथा प्रदेशवत्व-प्रप्रदेशवत्व का स्वरूप दर्शाया है। कालद्रव्य को अप्रदेशी (एक प्रदेशी) कहा है। कालद्रव्य के द्रव्य तथा पर्याय को स्पष्ट किया है। प्रकाश के प्रदेश का लक्षण लिख कर तिर्यक प्रचय तथा उर्ध्वप्रचय का स्वरूप भी निरूपित किया है। कालद्रव्य में उत्पाद-व्यय-नोव्यपने को सिद्धि, उसके प्रदेशमापना और अस्तित्व इत्यादि की सिद्धि करते हुए इस अधिकार का उपसंहार किया है। १. प्रवचनसार, तन्वपदीपिकाति, गाथा ११५ से १२६ तक। २. वही, गाथा १२७ में १३४ तया । ३. वही, गाथा १२५ से १४४ तक ,
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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