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________________ प्रथम अध्याय पूर्वकालीन परिस्थितियाँ मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज बिना मानव जीवन का सर्वाङ्गीण विकास संभव नहीं है। वन विहारी, एकल बिहारी मुनिराजों आचार्यो आदि को भी यदाकदा ग्रामों, नगरों तथा मानव-समाज के बीच आना पड़ता है। भले ही वे जगज्जनों को करुणाबुद्धि से आत्मकल्याण का उपदेश देने प्राव अथवा स्वयं के प्राहार-पानी के असह्य विकल्प को मिटाने के लिए प्रावें, परन्तु उनका सम्पर्क कुछ काल के लिए विभिन्न प्रकार की समाजों से अवश्य होता ही है। समाज के वर्तमान बातावरण एवं परिस्थितियों के निर्माण में पूर्वकालीन परम्परागों, मान्यताओं, और परिस्थितियों का असर अवश्य पाया जाता है। उक्त पूर्वकालोन व समकालीन समाजों के वातावरण का प्रभाव साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अवश्य होता है। प्रतिभाशाली साहित्यकार अपने युग की पूर्ववर्ती या समवर्ती परिस्थितियों से जहां एक और प्रभावित होते हैं, वहीं दूसरी ओर वे तत्कालीन युग को भी अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व से प्रभावित तथा अनुप्राणित भी करते हैं । अतः किसी भी साहित्यकार के व्यक्तित्व एवं कर्तत्व के अध्ययन और मल्यांकन हेतु उसकी पूर्वकालीन तथा समकालीन परिस्थितियों और विचारधाराओं का सिंहावलोकन किया जाना महत्त्वपूर्ण ही नहीं, अपितु आवश्यक भी है । प्रकृत में आचार्य अमृतवन्द्र की पूर्वकालीन परिस्थितियों का आकलन तीन प्रकार से किया जा रहा है। वे तीन प्रकार हैं धार्मिक, साहित्यिक और राजनीतिक परिस्थितियां । इनमें सर्वप्रथम धार्मिक परिस्थितियों का आकलन करते हैं। पूर्वकालीन धार्मिक परिस्थितियाँ धर्म आचारों से और दर्शन विचारों से सम्बन्वित होता है। आचरण की आधारशिला विचार ही हैं, अत: धर्म और दर्शन अथवा आचार और विचार दोनों में परस्पर घनिष्ट सम्बन्ध है। भारत धार्मिक प्राचारों और विचारों के लिए विश्वविख्यात है 1 भारत
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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