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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व रूप सहज ही प्रस्फुटित हो उठा है, इसलिए समस्त कृति में २१ पद यथास्थान, स्वाभाविक रूप से प्रादुर्भूत हुये हैं । प्रवचनसार मूल तथा उसकी उक्त वृत्ति के अनुशीलनवाल होता है कि मूगापागाने उनकी टीका कहीं अधिक क्लिष्ट प्रतीत होती है, किन्तु मूलगाथाओं में निहित भावों की गम्भीरता तथा विशदता का जैसा ज्ञान तत्त्वप्नदीपिकावृत्ति में उपलब्ध है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है।
उक्त ग्रन्थ पर हिन्दी, अंग्रेजी, गुजरातो, मराठो, संस्कृत, कन्नड़, तमिल प्रादि भाषाओं में गद्य तथा पद्य में अनेक टोकाएं, अनुवाद तथा प्रकाशन निकल चुके हैं । सम्पूर्ण भारतवर्ष के कोने-कोने में, जिन-मंदिर तथा शास्त्रभण्डारों में इसकी प्रतियां उपलब्ध होती हैं । पाकिस्तान के मुलतान शहर से इस ग्रन्थ की कई हस्तलिखित प्रतिलिपियां जयपुर लाई गयीं थीं। अफीका, लंदन, अमेरिका आदि विदेशों तक में उक्त कृति का समादर एवं प्रचार हुआ है । केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वारेण्ड फहेगां ने प्रवचनसार तथा उसकी तत्त्वप्रदीपिका वृत्ति का अंग्रेजी भाषान्तरण करके केम्ब्रिज विश्व विद्यालय प्रेस, लंदन से एक संस्करण प्रकाशित कराया था। डॉ. ए. एन. उपाध्ये द्वारा लिखित प्रवचनसार की विस्तृत अंग्रेजी प्रस्तावना का विभिन्न विश्वविद्यालयों में सम्मान किया गया था। बम्बई विश्वविद्यालय में एम० ए० के पाठ्यक्रम में उक्त ग्रन्थ को निर्धारित किया गया था । आज भी उक्त अन्य की हस्तलिखित, ताड़पत्रीय तथा मुद्रित तीनों प्रकार की प्रतियां उपलब्ध हैं। नामकरण -
___ "तत्वप्रदीपिकावृति' के नामकरण के संबंध में कुछ प्रकाश ऊपर डाला जा चुका है । अमृतचन्द्र के पश्चात्वर्ती आचार्य पद्मप्रभमलधारीदेव ने उक्त टीका का उल्लेख "प्रवचनसारव्याख्या'' नाम से किया है। टीकाकार ने स्वयं प्रारम्भ में "प्रकटिततत्त्वा प्रवचनसारवृत्तिः" लिखा है, संभवतः इन्हीं शब्दों पर से उक्त टीका का नाम तत्त्वप्रदीपिकावृत्तिः अथवा तत्त्वदीपिका नाम चल पड़ा है। प्रोफेसर बारेण्ड फडंगां ने इसे "लेम्प ऑफ ट्र. थ" या "तत्त्वप्रदो पिका" या "इल्युमीनेटर प्रॉफ थ"२
१. नियमसार, तात्पर्यवृतिः, गाथा १२३ की टीका - "तथा चोबत प्रवचनसार
व्याख्यायाम्। २, Pravachanasari ol Kundakunda with the CouTumentary "Taluva Dipiks"
B. Foddegon.C.P. II (Lamp of Truth or 'Tillya Pipiku or Illuminator or 'I ruti).