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________________ २५० ] [ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व अध्यात्म का मुकुटमणि ग्रन्थ है। जिस प्रकार टीकाकार मल्लिनाथ के बिना कालिदास को समझना कठिन है, उसी प्रकार टीकाकार आचार्य अमृतचन्द्र की आत्मख्याति टीका बिना प्राचार्य कुन्दकुन्द के आध्यात्मिक रहस्यों को समझना कठिन है । “समयपाहुड़" की प्रकृत टीका आत्मख्याति का उनकी समवर्ती तथा परवर्ती अध्यात्मधारा पर व्यापक प्रभाव पड़ा । अमृतचन्द्र की उक्त टीका से प्रभावित ग्रन्थकारों ने अध्यात्मपरक तथा प्रात्मख्याति टीका की विशेषताओं से अनुप्राणित रचनायें की हैं जिसका उल्लेख पहले किया जा चुका है । आचार्य अमृतचन्द्र की उक्त कृति प्रौढ़ तथा प्रांजल गद्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है । उक्त कृति से एक ओर जैनतत्त्वज्ञान की समृद्धि हुई है वहीं दूसरी ओर संस्कृत वाङमय की साहित्यश्री विशेष रूपेण अलंकृत एवं चमत्कृत हुई है । टीकाकार ने इसे नाटकीय शैली में प्रस्तत किया है । इस टीका में बीच-बीच में पद्यरूप काव्यों का भी समावेश हआ है जो कलश नाम से विश्रत हैं । वे कलश अमृतचन्द्र की उच्चकोटि की काव्य-प्रतिभा के प्रतीक हैं। कालांतर में उक्त कलशों को संकलित कर एक स्वतन्त्र ग्रन्थ की तरह 'समयसार कलश" नाम से प्रकाशन किया जाने लगा । उक्त टोका एवं कलश अध्यात्म रस से परिपर्ण तथा नाटकीय रंग में अनरंजित हैं। अमृतचन्द्र की उक्त टीका ऐसा नाटक प्रस्तुत करती है कि जिसको देखकर या सुनकर श्रोताओं के हृदय के फाटक (जाननेत्र) खुल जाते हैं।' इस टीका के विभिन्न भाषाओं में विभिन्न स्थानों से अनेक संस्करण तथा प्रकाशन हुये हैं । इसकी प्रतियां भी समग्र भारत वर्ष के जिनमंदिरों तथा शास्त्र भण्डारों में विद्यमान हैं। नामकरण - "समयपाहुड़" की उक्त टोका का नामोल्लेख, स्वयं टीकाकार ने "आत्मख्याति" नाम से अनेक बार किया है। आत्मख्याति नामकरण तथा उसकी सार्थकता के कुछ आधार इस प्रकार हैं १. उक्त टीका क रसिक पं. बनारसीदासजी ने अपने "समयसार नाटक" नामक अन्ध में लिखा हैयाही के जौ पक्षी उड़त शान गगन मांहि, याही के विपश्ची जरा जाल में फालत हैं। हाटक सो विमल निराटक सो विस्तार, नाटक सुनत हिय फाटक खूलत हैं ।। उत्थानिका, पद्य नं. १५
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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