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________________ कृनिया 1 [ २४५ सकता है । पूर्वाचायवर्णित चरणानुयोग विषयक मूल परम्परा का पुनरुद्धार संवर्द्धन, संरक्षण तथा प्रचार-प्रसार अमृत चन्द्र ने पुरुषार्थसियपाय की रचना करके किया। उन्होंने आचार्य जिनसेन की परम्परा को नहीं अपनाया । प्राचीन मून परम्परा में भी उन्होंने श्रावक की ११ प्रतिमाओं की अपेक्षा, श्रावक के १२ प्रतों पर विशेष जोर दिया; जबकि १२ यतों का निरूपण दो तिहाई भाग में (१५६ पद्यों में) किया है।' साथ ही १२ तार, षट्झावश्यक, पांच समिति तथा दशधर्मों के एकदेवा पालन पर भी जोर दिया है ! उनका परुषार्थसिद्धयपाय वास्तव में चरणानुयोग की परम्परा का संरक्षक है। उनके बाद कई श्रावकाचार ग्रन्थों का प्रणयन हुआ, परन्तु अधिकांश प्रणेताओं ने आचार्य अमतचन्द्र का होनाधिक रूप में अनुकरण अवश्य किया है। पश्चाद्वर्ती मुनि व श्रावकाचार विषयक ग्रन्थों में सोमदेवसूरि (ईस्वी ६४३ से ६६८) का यश स्तिलऋचम्पूगत उपासकाध्ययन, अमितगति आचार्य (ईस्वी ६६३ से १०२१) का अमितगति श्रावकाचार, चामुण्डराय (ग्यारहवीं सदी ईस्वी) का चारित्रसार गत श्रावकाचार, स्वामी कार्तिकेय (ईस्वी १००८ से आगे का कालिके यानुप्रेक्षागत श्रावकाचार, बसुनंदि (१०४३ ईस्वी) का वसुनंदि श्रावकाचार, देवसेन (ईस्वी दसवीं सदी) का सावयधम्म दोहा, पण्द्धित प्राशाधर (ईस्वी वारहवीं सदी) का सागार घर्भामृत तथा अनगार धर्मामृत इत्यादि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं । पं. आशाबर ने सागारधर्मामृत में पूर्णतः भट्टारकीय पद्धति का अनुकरण किया है। साथ ही पंचामृताभिषक जिनेन्द्रपूजा हेतु बगीचा-बावड़ी आदि बनवाना", कन्यादान को पुण्य बन्ध का कारण लिखना, शिथिलाचार का पोषण' इत्यादि आगम विरुद्ध बातों का समावेश सागार धर्मामुत में किया है। पं आशाधर ने तो युगानुरूप ग्रन्थों की रचना की। वे स्वयं लिखते हैं .. --:. -...१. पुरुषासित युगाय, पशु ३७ से १६६ तक। २. वहीं, गद्य क्रमांक १६७ से २५० तक । ३. वहीं, पद्य क्रमांक २७१ ४. वहीं, पद्य क्रमांक २०३ ५. यही, पद्य क्रमांक २०४-२०५ ६. सागारवामृत, अध्याय ६, पद्य २२ ७. वही, अध्याय २, पद्म ४० ८, वही, प्रन्याय : पृष्ठ ५७, ५६, ५६ ६. वही, अध्याय २, पद्य ६४
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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