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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
"ग्रन्थः कृतस्नेन युगानरूपः' ।' यहां यह भी उल्लेख्य है कि पं. आशाघर ने जहां सागार धर्मामृत में अमृतचन्द्र का अनुसरण नहीं किया, वहीं उन्होंने अपने अनगार घर्मामृत में उनका पूरा-पूरा अनुकरण किया है। अनगारधर्मामृत में उन्होंने आचार्य अमुतचन्द्र के ग्रन्यों के अनेक पद्य प्रमाण रूप में उपस्थित किये हैं। प्रणाली -
श्रावकाचार तथा मुनि-आचार विषयक ग्रन्थों की रचना सीधी निरूपण शैली में की जाती थी जिसे हम परिभाषा शैली कह सकते हैं, इस शैली का प्रयोग सर्वप्रथम रत्नकरण्ड श्रावकाचार में मिलता है। प्राचार्य अमृत चन्द्र ने पुरुषार्थसिद्ध युपाय में परिभाषा शैली के साथ ही साथ आध्यात्मिक एवं ताकिक शैली का भी प्रयोग किया है। जहां एक और उन्होंने नयात्मक कथन शैली पर जोर दिया, वहीं दूसरी और नयपक्ष से सावधान रहने का भी उपदेश दिया है। उदाहरणार्थ एक ओर तो वे मात्र व्यवहार के जानने बानीको व्यवहार जिनाना का निषेध कारते हैं तो दूसरी ओर वे निश्चय को यथार्थ में न जानकर, निश्चय का ही प्राश्रय लेकर अपने परिणामों और आचरण को नहीं सुधारने वालों की भर्सना भी करते हैं। इस प्रकार पुरुषार्थसिद्धय पाय ग्रन्थ में उन्होंने बड़ी सावधानी पूर्वकः निश्चय-व्यवहार नय की योग्य संधि सहित विवेचना की है। अहिंसा के सिद्धांत को ध्या पत्राता एवं सूक्ष्मता पर बल देकर उसे ही प्रमुग्त्र सिद्धांत अथवा जिनागम के साररूप में निरूपित करने में उन्होंने बड़ी कुशलता प्रदर्शित की है । तात्विक, सैद्धांतिक तथा दार्शनिक विवेचना का पर्याप्त पुट उनकी शैली में पाया जाता है। ग्रंथ वैशिष्ट्य -
उक्त ग्रन्थ अनेक विशेषताओं से विभूषित हैं उनमें कुछ इस प्रकार हैं - १. “अनेकांन" की सर्वाधिक महत्ता प्रदर्शित की गई है।
१. जननिबन्धगलावलि, पृष्ठ २४४ २. पुरुषावसिद्ध युपाय, 'पद्य नं. ६ ३. वहीं, गद्य' नं. ५.