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कृतियाँ ]
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लोके"
पद्य ६६ संपूर्ण पद्य ६६ मोक्तव्यं शुद्ध द्धिभिः मधुकरहिंसात्मकं भवति
सततम" 'वस्तु नि मधुयति हिंसा "भवति मधु मूढधीको यः |
तदाश्रय प्राणिनां घातात् स भवति हिंसकोऽत्यतम् ।" पद्य ७४ निश्चित्य
परिवज्यं पद्य ७४ औत्सगिकी
उत्सर्गिको पद्य ८५ शीन च
त्वचिरेण पद्य १०६ यद्यपि
तदपि पद्य १५५ प्रोथ्थाय
पोध्याय शुद्धा
कल्पम् उक्त
उक्तं पद्य २२० यत्राधित पुण्यं प्रास्रवतियत्तु पुण्यं पद्य २२१ मित:
मिति ४. उक्त प्रकाशन में पद्य संख्या में कर भंग हैं । पद्य क्रमांक ५० वा हट जाने से शेष सभी में पद्य क्रम भग है । सोनगढ़ प्रति का पद्य क्रमांक ७४, ७५, ७६, ७७, ७८, बेलगांव प्रति के पद्य क्रमांक ७३, ७४, ७५, ७६, ७७ हैं।
पूरुषार्थसिद्ध यपाय के शेष उपलब्ध प्रकाशनों में क्रमश: १६०४ ईस्वी का पं० नाथूराम द्वारा सम्पादित, १६०६ ईस्वी का सूरजभानु वकील देवबन्द का प्रकाशन, १६२६ ईस्वी का पं० पसालाल चौधरीकृत काशी का प्रकाशन, १६२७ ईस्वी का पं मक्खनलाल शास्त्री मुरैना का बहद् सस्करण, १६२८ ईस्वी का अज्ञात लेखक का मराठी संस्करण, १६२६ ईस्वी का शंकर पढरीनाथ रणदिवे सोलापुर का प्रकाशन, १९३६ ईस्वो का पं० सत्यंघर जयपुर का संस्करण, १६५८ ईस्वी का सागरचन्द्र बड़जात्या लश्गर का प्रकाशन, १९५६ ईस्वी का पण्डित सरनाराम बारूमल (सहारनपुर) का, १६७३ का प्रा. बी.डी, पाटिल कोल्हापुर का मराठी संस्करण, १९७४ ईस्वी का वैद्य गंभीरचंद जैन एटा का हिन्दी संस्करण, १९७६ ईस्वी का पं. विद्याकुमार से ठो कुचामन सिटी की बृहद् टीका, १६६६ की पं० मुन्नालाल रांधेलीय सागर तथा पण्डित मनोहर वर्णी की टोकायें इत्यादि के प्रकाशन उपलब्ध हुए हैं । इसके अतिरिक्त पुरुषार्थसिद्ध यपाय कर अंग्रेजी में १६३३ ईस्वी में