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________________ २४२ ] [ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व २, इस प्रकाशन में पद्य क्रमांक ७० को छोड़ दिया गया है तथा पद्य नं, २२७ नं. नवीन मिला दिया गया है। इसमें मिलाये गये श्लोक पर ध्यान देने से ज्ञात होता है कि उक्त श्लोधा मराठी टीकाकार ने या तो स्वयं ग्रन्थान्त में प्रयुक्त शब्दों को लेकर रच लिया अथवा भ्रम से उसे श्लोक समझ कर उसे श्लोक क्रमांक दे दिया है। प्रक्षिप्त श्लोक इस प्रकार है - पीयूषचन्द्रसूरे: कृतिरिति पुरुषार्थसिद्धयुपायोयं । नाम जिनप्रवचनरहस्य बोशः समाप्तिमति ।। उक्त पद्य में अमृत चन्द्र की जगह पीयूषचन्द्र पद बदलकर रख दिया है। पं. नाथूराम प्रेमी द्वारा सम्पादित तथा हिन्दी में रूपांतरित पुरुषार्थसिद्धयपाय ग्रन्थ के अन्त में यह गद्यांश दिया है ... 'इति श्रीमदमृनचन्द्रसूरीणां कृतिः पुरुषार्थसिद्धयुपायोऽयं नाम जितप्रवचनरहस्यकोषः समाप्तः ।"२ ३. इस प्रकाशन में पश्चात् के प्रकाशनों से पाठ भेद भी पाया जाता है जो महत्त्वपूर्ण है। पाठांतर सूची यहाँ प्रस्तुत की जा रही है - बेलगांव (मराठी) प्रति सोनगढ़ प्रति पद्य १४ अयमेव हि एवमयं पद्य २५ कर्त्तव्या करणीया पद्य ३४ प्रकाशयोरिह प्रकाशयोरिव पद्य ४६ व्युथ्थानावस्थायां व्युत्थानावस्थायां प्रवृत्तानाम् प्रवृत्तायाम् पद्य ५६ जगति झटिति पद्य ६१ तत्काल प्रथममेव पद्य ६६-६७ निगोद निगोत पद्य ६८४ १. छोड़ा गया पद्य इस प्रकार है - स्वयमेव विगलितं यो गृहणीयादा छलेन मधुगोलात् । तथापि भवति हिंसा तदाश्रय प्राणिनां घातात् ।।७।। २. पुरुषार्थसिद्ध युपाय, पं. नाथूराम, रायचन्द्र जैन शास्त्रमासा बम्बई से १९०४ ईस्वी में प्रकाशित, अन्तिम पृष्ट ११५
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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