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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
पुरुषार्थगि म सा गति कोइरमलजी तथा पण्डित भूघर मिश्र की टीकाओं से भी पहले एक टीका संस्कृत भाषा में भी लिखी जा चुकी थी, जिसकी प्रतियां अभी भी जयपुर के श्री दिगम्बर जैन बघीचन्द जी' तथा श्री दिगम्बर जैन मन्दिर ठोलियों का (जयपुर) में उपलब्ध हैं। बधीचन्द मन्दिर की प्रति में टीका का नाम त्रिपाठी टीका दिया है। दिगम्बर जैन मन्दिर पाटोदी जयपुर में उक्त संस्कृत टीका की एक प्रतिलिपि सम्वत् १७०७ (ईस्वी १६५०) की विद्यमान है। प्राचार्य कनककीर्ति के शिष्य सदाराम ने फागुईपुर में प्रतिलिपि की थी।३ संस्कृत टीका की एक प्रति श्री दिगम्बर जैन तेरहपंथी बड़ा
पनि प्रमृतचन्द्र जतीश जलधर दुखमग्रीषम कान में ।
उपदेस वरषा करी शीतल भविक जन बनजाल में ।। १५ ।। सर्वया - साघरमी लोगनि पौर मोहि दिद कीनों ।
मैं भी मन फेरि बुद्धि लिखवे में धरी है ।। रंगनाथ पंडित ने प्ररथ पढाइ दीनौं । यामैं कहो कौन कवि रीति उपचरी है ।। व्याकरन-कोषा-काला विधा में निपुन भला । बंसीधर मित्र तिन सोधि शुद्धि करी है। एते उपगारी मिलि कोना उपगार नीका ।
तब यह बालबोध टीका विसतरी है।। १६ ।। छप्पय - पनविविविध चरनारविन्द प्रसुरासुर केरे।
कर दास अरदास पास हर साहिब मेरे ।। यह संसार असार खार सागर है सोई । तुम बिन तारन तहां तिहुँकाल' न कोई ।। अब हरहु दीन की मलिन मति, भर हौं पास अशरन शरन ।
नित करहु क्षेम चहुसंग में, शांतिदेव सब सुख करन ।। इति (श्री पुरुषार्थ सिद्ध पुपाय अपरनाम जिनप्रवच रहस्य कोश की भाषा टीका सपूर्ण)
(देखिये पृष्ठ १२१, १२२ जबलपुर की पान्डुलिपि) १. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की सूची, भाग ३, पृष्ठ ३२ २. बही, पृष्ठ १८५ ३. बही, भाग ४, पृष्ठ ६८