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________________ कृतियां ] [ २२१ अमृतचन्द्र के अन्य ग्रन्थों की रचनाओं से मिलान करने पर शैली, शब्द, विद्वत्ता, विषय स्पष्टीकरण क्षमता और अन्त में ग्रन्थ कर्तुत्व का विकल्प निषेध इत्यादि साम्यताओं से भी उक्त कृति आचार्य अमृतचन्द्र कृत स्पष्टरूप से ज्ञात होती है। प्रामाणिकता - श्रावकाचारों की परम्परा में रत्नकरण्डनावका वार के पश्चात् यदि कोई सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ माना गया है, तो वह है पुरुषार्थसिद्धयपाय । आचार्य अमृतचन्द्र ने रत्नकरण्डश्रावकाचार में प्रणीत वर्ण्यवस्तु को ही आधार बनाते हए तथा कुन्दकुन्दाचार्य के अध्यात्म ग्रन्थों को आत्मसात् करके जो टीकाएँ रची, उन्हीं के आधार पर पुरुषार्थसिद्धयपाय ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इस ग्रन्थ रचना से न केवल श्रावकाचार एवं यत्याचार विषयक प्राचीन आर्षपरम्परा का उन्नयन ही हुआ, अपितु उक्त परम्परा का सम्बर्द्धन, संरक्षण, विकास तथा प्रकाश भी हपा है। उक्त अन्य रचना से प्रभावित एवं वनमापित होकर उनके बाद के विद्वानों ने प्राचार विषयक अनेक ग्रन्थों की रचना की हैं। उन सभी रचनाओं को दिशाबोध एवं प्राधारस्रोत पुरुषार्थसिद्धयुपाय से हीनाधिक रूप में अवश्य प्राप्त हुए हैं। प्राधार स्रोत - पुरुषार्थसिद्धयुपाय मन्ध के प्राचार स्रोत भी अमृतचन्द्रकृत टीकाओं में उपलब्ध होते हैं । इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं - १. पुरुषार्थ सिद्ध युपाय ग्रन्थ की रचना टीकाकृतियों के बाद की है, क्योंकि टीकाओं में उपलब्ध भाष्य के कुछ अंशों को पद्यरूप में पुरुषार्थसिद्ध युपाय में पुनः प्रस्तुत किया गया है । एक स्थल पर अमृतचन्द्र ने अपनी टीका में पुरुषार्थ की सिद्धि के उपाय स्वरूप ध्यान का उल्लेख किया है ।' उक्त उल्लेख पुरुषार्थ सिद्ध युपाय ग्रन्थ के नामकरण का प्राधार सूत्र प्रतीत होता है। २. आचार्य अमृतचन्द्र ने पुरुषार्थसिद्ध युपाय का प्रारम्भ वक्ता के लक्षण से किया है । वे लिखते हैं - मुख्य और उपचार के कथन द्वारा शिष्यों के दुनिवार अज्ञानभाब को नष्ट करने वाले, व्यवहार तथा निश्चय १. "परमपुरुषार्थसिद युपायभूतं ध्यान जायते इति ।" पंचास्तिकाय गाथा १४६ की टीका, पृष्ठ २१५
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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