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कृतियां ।
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भी चर्चा की गई है, जो किन्हीं विद्वानों द्वारा भ्रम से अमतचन्द्र की मान ली गई हैं जबकि वे कृतियाँ अमृतचन्द्र कृत नहीं हैं। इस सम्बन्ध में षट्पाहुड़ टीका, पन्नाध्यायी, ढाढसीगाथा तथा श्रावकाचार नामक ग्रंथ नचित हैं। प्रस्तुत अध्याय में उपरोक्त विभामों के अन्तर्गत अमतचंद्र श्री कृतियों का सर्वाङ्गीण सविस्तार परिचय कराया जा रहा है।
पुरुषार्थसिद्ध युपाय (पद्य) परिचय -
"पुरुषार्थसिव पाय" आचार्य अमृतचन्द्र कृत, आचारविषयक अनपम ग्रन्यरत्न है। इसका अपरनाम 'जिनप्रबचनरहस्यकोश" भी है। वास्तव में उक्त ग्रन्थ जिनेन्द्र कपिल जिनवाणी का सार है। यह अमृत चन्द्र की मौलिक पद्यरचना है, जो २२६ आर्या छंदों में रचित है तथा जैनजगत में व्यापक रूप से विश्रुत है । इस में श्रावकाचार का प्रमुख रूप से तथा यत्याचार (साघचर्या) का गौणरूप से संक्षिप्त निरूपण है। यह कृति, द्रविड़, कन्नड़, हिन्दी, दंढारी (राजस्थानी हिन्दी), गुजराती, मराठी, अंग्रेजी आदि अनेक भाषाओं में अनेक संस्करणों में, गद्य तथा पद्य उभयरूपों में तथा लाखों की संख्या में प्रकाशित हो चुकी है। अब तक शताधिक विद्वान् इस ग्रन्थ पर टीकायें रचकर प्रकाशित करा चुके हैं। जैन ही नहीं, अजेन विद्वान भी इस कृति से प्रभावित होकर अपने विचारों में परिवर्तन कर जैनदर्शन की ओर आकर्षित हुए हैं।' लगभग एक हजार वर्ष से जैन श्रावक एवं मूनि के आचरण को आलोकित करने वाली इस कृति का प्राचार संहिता के रू। में सर्वोच्च एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। सर्वप्रथम ईस्वी दूसरी सदी में आचार्य समंत भद्रस्वामी द्वारा जंन श्रावकों को आचार संहिता के रूप में रत्नकरण्डथाबकाचार" नामक कृति की रचना की गई थी। तत्पश्चात् सर्वाधिक मान्य एवं प्रभिद्ध रचना आचार्य अमृत चन्द्र कृत "पुरुषार्थसिद्ध युपाय" ही है। इसका अहिंसा प्रकरण अत्यंत गहन, स्पष्ट, विशद, अद्वितीय एवं अनुपम है । नामकरण -
इस ग्रन्थ का अपग्नाम 'जिनप्रवचनरहस्यकोश" इसके महत्त्व को स्पष्टत: प्रकाशित करता है। आचार्य अमृतचन्द्र को इस रचना का
१. देखिये - प्रस्तावना, पृष्ठ ५; ६ (पु. गि.उ.) पं: नाथूराम प्रेमी सन् १६.०४ ।