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चतुर्थ अध्याय
कृतियाँ
प्राचार्य अमनचन्द्र जितने सफल एवं कुशल टीकाकार थे, उतने ही सिद्धहस्त तथा गम्भीर मौलिक. ग्रंथ-प्रणेता भी। उनकी समस्त कृतियों में अध्यात्म का अमृत छल कता है । वे अध्यात्म-रसिक, प्रौढ़, प्रांजल, व गंभीर टीकाकार, दार्शनिक विद्वान, तथा प्रात्मानुभवी बिचारक थे । उपयुक्त सभी वैशिष्ट्य उनको कृतियों में बत्र तत्र सर्वत्र विकीर्ण हैं ! उनकी समस्त कृतियों का सर्वाङ्गीण परिचय कराने हेतु यहाँ तीन विभाग किये गये हैं, जिनके अन्तर्गत उनकी कृतियों का समुचित परिचय प्रस्तुत है।
प्रथम विभाग में अमतचन्द्राचार्य प्रणीत मौलिक स्वतंत्र कृतियों का आकलन है। दूसरे विभाग में उनकी गद्य तथा पद्यमयी टोकाओं का अनुशीलन प्रस्तुत है, और तीसरे विभाग में अन्य कृतियों का परिचय कराया है । इसके दो खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में उन कृतियों का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है, जो अमृतचन्द्र प्रणीत सिद्ध की गई हैं तथा दूसरे खण्ड में उन कृतियों की चर्चा की जा रही है, जो भ्रमवशात् अमृतचन्द्र की कल्पित हैं।
द्वितीय विभाग में ग्रहीत टीकाओं में समयसार को "आत्मख्याति", प्रवचनसार की 'तत्त्व प्रदीपिका" तथा पंचास्तिकाय की 'समयव्याख्या" नामक गद्य टीकाएं हैं, जो संस्कृत गद्य वाङमय की अमूल्य निधियाँ हैं तथा जैनदर्शन का सार अपने में समाहित किये हुए हैं। इसी विभाग में समयसार की आत्मख्याति टीका के साथ-साथ प्रयुक्त संस्कृत पद्यों का संकलन है, जो समयसारकलश नाम से अभिहित है। इसे पाटीका के रूप में प्रस्तुत किया गया है । इसके अतिरिक्त दूसरी पद्यटीका "तत्त्वार्थसार' भी है जो प्राचार्य उमास्वामी कृत तत्त्वार्थसूत्र के आधार पर लिखी गई सविस्तार टीका है।
तृतीय विभाग में सर्वप्रथम प्रथम बार प्रकाश में आने बाली अमतचन्द्र की अत्यन्त क्लिष्ट, दार्शनिक, गम्भीर रचना है, जिसका नाम 'लघुत्त्वस्फोट' अपरनाम 'शक्तिमाणितकोश' भी है। यह जिनेन्द्रस्तुति विषयक एक अद्वितीय काव्यकृति है। इसी विभाग में उन कृतियों की