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व्यक्तित्व तथा प्रभाव ]
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किया है। उनके मूल पड़ों को प्रमाण रूप में उद्धृत किया है ।' उद्धृत पद्य इस प्रकार है -
भेदेनैक्यमुपानीय स्वजाते रविरोधतः ।। समस्तग्रहण यस्मात्स नयः संग्रहो मतः ॥ (अमृतचन्द्र)
भट्टारक वीरसेन (कारंजा) पर प्रभाव (१९२६ ईस्वी)-- भट्टारक वीरसेन कारंजा (अकोला) की भट्टारक गद्दी के पट्टधर थे । वे अध्यात्मशास्त्र के मर्मज्ञ तथा प्रसारक थे । जैन अध्यात्म की चर्चा को घर-घर तक फैलाने का उन्होंने प्रयास किया। वे स्वयं आचार्य अमृतचन्द्र की कृतियों में वर्णित अध्यात्म से प्रभावित थे । उन्होंने सर्वप्रथम "श्रीसमयप्रामृत-आत्मख्याति टीका" को मुद्रित कराया था ।
२. पं. हीरानन्द जी कृत 'पंचास्तिकाय-समयसार" पद्यानुवाद का भी प्रकाशन उनकी प्रेरणा से हुआ था । उक्त पद्यानुवाद आचार्य अमतचन्द्र कृत समयव्याख्या टीका से अनुप्राणित है ।
३. पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री ने उन्हें वर्तमान युग में समयसार का अध्येता लिखा है।
४. अ. शीतलप्रसाद ने भी उन्हें समयसार का व्याख्यान करने बाला अद्वितीय महात्मा निरूपित किया है। ब्रह्मचारी जी ने स्वयं भट्टारक जी के पास अमृतचन्द्र कृत समयसार-आत्मख्याति टीका का वाचन किया था । वे वीरसेन के अर्थ प्रकाशन से लाभान्वित हुए थे।
इस प्रकार स्पष्ट है कि आचार्य प्रमतचन्द्र का भट्टारक वीरसेन पर प्रभाव था ।
१. काति केमानुप्रेक्षा गापा २७२ को टीका, पृष्फ १६५ राजचन्द जैन शास्त्र माला
मागास, १९६० २. तत्त्वार्थसार, पीठिका (प्रथम अधिकार) पद्य नं ४५ ३. आत्मप्रमोद (प्रस्तावना, प्र. नन्दलाल) पृफ १२ ४, समयसार बैभव, प्रथम पृष्ठ १५ ५. महजसुखसाधन (. सोललप्रसाद जी भूमिका र५३)