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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व उपाध्याय हर्षवर्धन पर प्रभाव (१५ वीं ईस्वी शती)- उपाध्याय हर्षवर्धन ईसा की १५वी शती के विद्वान हैं। उनकी एक रचना "अध्यात्म बिन्दु" गाम से लालभाई दलपतभाई संस्कृत विद्यामन्दिर, अहमदाबाद से प्रकाशित है। उक्त रचना अध्यात्मपरक शैली में निश्चय-व्यवहार. कर्ता-कर्म तथा शुद्धात्मस्वरूप प्रकाशनार्थ रची गई है। इस रचना पर प्राचार्य कुन्दकुन्द तथा उनके टीकाकार अमृतचन्द्र का प्रभाव पड़ा है । उक्त ग्रन्थ के सम्पादक विद्वान नगीन जे. शाह ने इस सम्बन्ध में अपनी प्रस्तावना में संकेत किया है। उन्होंने, हर्षवर्धन के ''अध्यात्म बिन्दु" ग्रंथ के कई पद्यों का समयसार मूल तथा उसकी अमृतचन्द्रकृत टोका के श्लोकों से शब्द साम्य एवं भावसाम्यदर्शक प्रमाण प्रस्तुत किये हैं।'
इससे ज्ञात होता है कि आचार्य अमृतचन्द्र का उपाध्याय हर्षवर्धन पर भी प्रभाव पड़ा था।
भट्टारक शुभचन्द्र पर प्रभाव (१५१६-१५५६ इस्वी) - नंदिसंघ बलात्कारगण की गुर्वावलि के अनुसार भद्रारक शुभचन्द्र विजयकीर्ति के शिष्य तथा लक्ष्मीचन्द्र के गुरु थे। आप षटभाषा कवि की उपाधि से विभूषित थे। आपने एक टीका रची जो परमाध्यात्मतरंगिणी नाम से विश्रुत है। आपका समय ईस्त्री १५१६ - १५५६ है ।२ आप आचार्य अमतचन्द्र की आध्यात्मिक रचनाओं तथा टीकाओं से प्रभावित थे। इसके कुछ आघार इस प्रकार हैं -
१. अमतचन्द्र की समयसार कलश टीका ने शुभचन्द्र को इतना अधिक प्रभावित किया कि उन्होंने उसके प्रत्येक कलश पर सुदर आध्यात्मिक टीका रची। अमृतचन्द्र के कलश अध्यात्म रसाप्लावित होने के कारण उन पर लिखित टीका का नाम 'परमाध्यात्मतरंगिणी" रखना भी उचित ही है । उक्त टीका उन्होंने त्रिभुवनकीति के आग्रह पर लिखी थी।
२. शुभचन्द्र ने कार्तिकेयानुप्रेक्षा की संस्कृत टीका भी लिखी है। उक्त टीका में उन्होंने अमृतचन्द्र के ग्रंथों की विषयवस्तु का भी प्रयोग
१. जैन संदेश, शोधांक - ३१, पृष्ठ ३१६ (दिसंबर १९७२) २. जैनेन्द्र सिद्धांतकोश, चतुर्थ भाग, पृष्ठ ४१ ३. संस्कृत काम के विकास में जैन कवियों का योगदान - प्रथम संस्करण
१९.१, पृष्ठ ४६