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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाष ] . [ २१५ अनुपम आत्म-वैभव दर्शाने वाले हैं । उन प्रवचनों का गुजराती में "नयप्रज्ञापन" तथा हिंदी में 'आत्मप्रसिद्धि' नाम से प्रथबद्ध प्रकाशन हो चुका है। ३. उन्होंने प्राचार्य अमृतचन्द्र को यत्र-तत्र सर्वत्र भूरि-भूरि प्रशंसा यी है। उनके समयसार कलश पर प्रवचन करते हुए उन्होंने कहा था कि आचार्य अमृतचन्द्र महामुनि दिगम्बर संत हुए हैं। वे सर्वशास्त्रों के पारगामी, तथा सातिशय निर्मलबुद्धि के धारक थे। वर्तमान भरतक्षेत्र में तीर्थंकरों का विरह है, परन्तु उन तीर्थङ्करों का उपदेश कैसा था, इसका स्पष्टीकरण कारके आचार्य कुन्दकुन्द ने तीर्थङ्करों के विरह को भुला दिया है और अमतचन्द्राचार्य देव ने भी अलौकिक टीकायें रखकर आचार्य कुन्दकुन्द के गम्भीर रहस्य को प्रगट कर गणवर तुल्य कार्य किया है । वाह, अंतरज्योति जगमगा दे - ऐसी टीका है। ये हैं संत कानजो स्वामी के अनभूतिगम्ध हार्दिक उद्गार आचार्य अमृतचन्द्र के प्रति, जो प्राचार्य अमृतचन्द्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के, संत कानजी स्वामी पर प्रभाव को प्रमाणित करते हैं। भ. निजानंब (स्वामी कर्मानन्द वेदांती) पर प्रभाव (१९२०१६७० ईस्वी) - रु. निजानन्द (स्वामी कमिन्द) भिवानी के अग्रवाल जातीय वैष्णव सम्प्रदाय में जन्मे थे। आपका मुकाव आर्यसमाजी विचारधारा की ओर विशेष था । वैदिक साहित्य का उनका गम्भीर अध्ययन था। उन पर आचार्य अमृत चन्द्र का गहरा प्रभाव था । इसका प्रबल प्रमाण यह है कि उन्होंने जो समयसार पर निजानंदीय श्लोक सहित टीका लिखी उसमें आचार्य अमृतचन्द्र के समयसार कलश के ६४ पद्य तथा तत्त्वार्थसार के ६ पद्य प्रमाण-रूपेण प्रस्तुत किये हैं। वे समयसार तथा उनकी टीकाओं का १८-१८ घंटे तक अध्ययन व मनन करते थे। इससे प्रकट होता है कि आचार्य अमतचन्द्र का क्षु० निजानंद पर प्रभान था। १. प्रात्मधर्म (मासिक) जुलाई, १९६४, पृष्ठ ? २. वहीं, दिसम्बर, १९६५, पृष्ठ ४५३, ४५४ ३. समयसार (निजानंदीय भाषा टीका) पृष्ठ क्रमांक १ ४. समयसार (निजानंदीय भाषा टीका) प्रकाशकीय पृष्ठ प्रथम
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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