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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व संत कानजी स्वामी पर प्रमाण (
१ EE: नी.. संत कानजी स्वामी का जन्म श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कुल में हुआ था। श्राप विलक्षण बुद्धि के धनी, परमविरागी तथा अध्यात्म रसिक संत थे । आपने प्राचार्य कुन्दकुन्द के समयसार को पाकर दिगम्बर जैनधर्म को स्वीकार किया। पश्चात् समग्न भारत में ही नहीं, अपितु विदेशों में भी दिगम्बर जैन अध्यात्म का शंखनाद एवं समयसार (गुद्वात्मा) का डिमडिम नाद किया। सर्वत्र अभूतपूर्व क्रांति ला दो तथा अध्यात्मयुग का प्रवर्तन किया। आपका जन्म १८८६ ईस्वी तथा स्वर्गवास १९८० ईस्वी में हुआ।' आप प्राचार्य अमृतचन्द्र की कृतियों के भ्रमरवत् रसिक थे। प्राचार्य अमृतचन्द्र के अध्यात्मामृत को पी-पीकर पानंद विभोर हो जाते थे । संत कानजी स्वामी आचार्य अमृतचन्द्र से अत्यधिक प्रभावित थे । इसके कुछ आधार इस प्रकार हैं -
१. उन्होंने अमृतचन्द्र की आत्मख्याति टीका सहित समयसार का सत्रह बार तो लोकोन्मुख पारायण किया था और अनेक बार आत्मोन्मुख । आत्मोन्मुख पारायण तो संख्यातीत किये थे। उन्होंने समयसार की प्रत्येक गाथा के मर्म को गहनता से समझा था, उसकी गूढ़ता में प्रवेश किया था । आत्मख्याति टीका के अतिरिक्त अमतचन्द्र की अन्य कृतियों का भी उन्होंने गहन अध्ययन एवं प्रचार-प्रसार भी किया। इतना ही नहीं, उन्होंने आचार्य अमृतचन्द्र की आत्मख्याति, तत्त्वप्रदी पिका और समयव्याख्या तीनों टीकाओं को संगमरमर की दीवारों पर उत्कीर्ण करा दिया । ये कार्य सोनगढ़ (भावनगर-सौराष्ट्र) में "महावीर कुन्दकुन्द दिगम्बर जैन परमागम मंदिर" में सम्पन्न हुप्रा जो सहस्रों वर्षों तक दिगम्बर अध्यात्म का अनुपम प्रवाह प्रवाहित रखेगा । परमागम मंदिर आचार्य कुदकुद, आचार्य अमतचन्द्र तथा पद्मप्रभमलघारीदेव की यशोगाथा का अमर-स्मारक तो है ही, साथ हो संत कानजी स्वामी की युमसृष्टि का चिर-प्रतीक भी है ।
२. आचार्य अमृतचन्द्र की तत्त्वप्रदीपिका टीका के अंत में वर्णित संतालीस नयों पर विस्तृत प्रबचन किए जो सम्यक अनेकांत शैली में
-. .. -. - - १. आगमपथ, (मासिक) मई १६७६ (विशेषांक), पृष्ठ ४०-४१ :: २. तीर्थकर, (मासिक) सितम्बर, १६७६ पृष्ठ २६ . . . . . .