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[ आचार्य अमृतचन्द्र ; व्यक्तित्त्व एवं कर्तृत्व करने की रुचि हुई। उक्त टीका में टोकाकार ने यशस्तिलकचम्पु, रयणसार, धर्मोपदेशपीयूषवर्षीश्रावकाचार, अष्टादश अक्षरीप्रबोधसार, योगीम्द्रदेवकृत श्रावकाचार, वीरनंदिकृत यत्याचार आदि ग्रन्थों का भी उल्लेख किया है।"
इससे स्पष्ट है कि प्राचार्य अमृतचन्द्र का प्रभाव पण्डित भूधरमिश्र पर भी था।
पं. गणेशप्रसाद वणी पर प्रभाव (१८७४-१६६१ ईस्वो)पं. शिसाद मलितपुर जिले के हसेरा बान में वैष्णव परिवार में पैदा हुए थे। बाद में प्रापने जैनधर्म धारण किया था। इनका जन्म १८७४ ईस्वी में हुआ था । आचार्य अमृतचन्द्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व दोनों से आप गम्भीर रूप में प्रभावित थे। इसके कुछ आधार इस प्रकार है -
१. उन्होंने आचार्य अमृतचन्द्र कृत आत्मख्याति संस्कृत टीका को कण्ठस्थ कर लिया था। क्योंकि वे उक्त टीका के गंभीर रसिक थे।
२. अपने एक पत्र में उन्होंने समयसार को मोक्षमार्ग (मुक्ति) का वकील बताया है। वे उक्त ग्रन्थ की अमृतचन्द्र कृत टीका के अध्ययन, मनन तथा रसास्वादन में निमग्न रहते थे।
३. अपने पत्रों में उल्लिखित सिद्धांतों एवं रहस्यों की पुष्टि में उन्होंने आचार्य अमृतचन्द्र की कृतियों से उद्धरण प्रस्तुत किये हैं । इतना ही नहीं उन उद्धरणों को उन्होंने प्राचार्य अमृतचन्द्र का आदेश कह कर अपनी आस्था एवं अपना आदर व्यक्त किया है ।
इन सभी बातों से प्रमाणित है कि प्राचार्य अमृतचन्द्र का प्रभाव पं. गणेशप्रसाद वर्णी पर अवश्य था।
१. पुरुषार्थसिद्ध युपाय, प्रस्तावना, पृष्ठ ५, पं. नायूराम प्रेमी (श्रीमद् राजचन्द्र
जन शास्त्रमाला) प्रकाशक - परमश्रुतप्रभावकमंडल, बम्बई वीर नि. संवत्
२४३१ (ईस्वी १६०४) । २. श्री गणेशप्रसाद वर्णी स्मृति प्रन्य खण्ड द्वितीय पृष्ठ १ ३. वही, खण्ड प्रथम, पृष्ठ ११३ ४. वणीवारणी, भाग ४, पृष्ठ १४६ ५. माध्यात्मिक पत्रावलि भाग ३, पृष्ठ ७७-७८