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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ] [ २११ कारण कार्य विधानं समकालं जायमानयोरपि हि। दीपप्रकाशयोरिव सम्यक्त्वज्ञानयोः सुघटम् ।। (अमृतचन्द्र)' सम्यक् साथै ज्ञान होय पे भिन्न अराधौ । लक्षण श्रद्धा जान दुहू में भेद अबाघो ।। सम्यक् कारण जान जान कारज है सोई । युगपत् होते हू प्रकाश दीपक ते होई ।। (दौलतराम )२ कर्तव्योऽध्यवसः सदने कारनामेषु पर। संशयविपर्ययानध्यवसाय विविक्तमात्मरूपं तत् ।। (अमृतचन्द्र) तातें जिनवर कथित तत्त्व, अभ्यास करीजे । संशय विभ्रम मोह त्याग आपो लख लीजै । (दौलतराम ) भेदविज्ञानतः सिद्धा सिद्धा ये किल केचन । अस्यैवाभावतो बद्धा बद्धा पे किल केचन ।। (अमृतचन्द्र) ५ जे पूरब शिव गये जांहि अरू आग जैहें। सो सब महिमा ज्ञानतनी मुनिनाथ कहै हैं ।। (दौलतराम) इस प्रकार स्पष्ट है कि आचार्य अमृतचन्द्र का प्रभाव पं. दौलतराम के रोम रोम में समाया था । पं. भूधरमिश्र पर प्रभाव (१८१४ ईस्वी)... पं. भूधरमिथ प्रागरा के समीपस्थ शाहगज के थे। आप जाति से ब्राह्मण थे। आपके गुरु का नाम रंगनाथ था। आपने पुरुषार्थ सिद्धयुपाय की टीका बृजभाषा में विक्रम संवत् १८७१ में लिखी थी। आपका समय संवत् १८५० से १६०० के बीच का प्रमाणित होता है । आप आचार्य अमृतचन्द्र की कृतियों से प्रभावित हुए, विशेषतः अमृतचन्द्र का पुरुषार्थसिद्ध यपाय अन्य उनके जीवन परिवर्तन का मूलकारण बना । पुरुषार्थसिद्धयपाय का अहिंसा प्रकरण आपको विशदबुद्धि में ऐसा समाया, कि आपकी उत्कंठा जैनधर्म के तत्त्वों को जानने की हई। पं. रंगनाथजी के पास आपने जैन सिद्धांतों की अभिज्ञता प्राप्त की, तथा पुरुषार्थसिद्धयुपाय को टोका १. पुरुषार्थसिद्ध युपाय, पद्य क्रमांक ३४ २. छहढाला, चतुर्थद्वाल, पद्य २ ४. छहढाला, चतुर्धढाल (पद्य ६ पूर्वाध) ६. छहलाला, रतुयंदाल (पद्य ८ पूर्वाध) ३. पुरुषार्थसिद्ध युपाय, ३५ ५. स. सा. क.१३१
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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