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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तुत्व अमृतचन्द्र कृत पुरुषार्थसिद्ध युपाय के पाठ श्लोक' उद्धत किये हैं। उन्होंने अपनी वनिकायों में अभूतचन्द्र के विचारों को यत्रतत्र अभिव्यक्त किया है । इससे स्पष्ट होता है कि वे भी आचार्य अमृतचन्द्र से प्रभावित थे।
पं. दौलतराम (१७९८-१८७५ ईस्वी)- पं. दौलतराम हाथरस के निवासी प्राध्यामिक विद्वान् थे । आपके १०० से अधिक पद्य उपलब्ध होते हैं, जो अध्यात्म एवं वैराग्य रस से रसाप्लावित हैं। "छहढाला" नामक कृति के कारण उनकी जैन समाज में बहुत प्रसिद्धि है । उनका समय १७६८ से १८७५ के बीच रहा है । पं. दौलतराम पर भाचार्य अमृतचन्द्र के प्रभाव के कुछ आधार निम्नानुसार हैं -
१. पं. दौलतराम ने प्राचार्य अमृतचन्द्र की कृति पुरुषार्थ सिद्ध युपाय की अवशेष टीका पूर्ण की, जिसे पं. टोडरमल ने प्रारम्भ किया था किन्तु वे अपने जीवनकाल में पूर्ण नहीं कर पाये।
२. उन्होंने अपनी रचना "छहढाला" में आचार्य अमृतचन्द्र के ग्रन्थों से भाव एवं * अहाकर उरोध रूम में प्रस्तुत किया है। उनके कुछ पद्य तो अमृतचन्द्र के श्लोकों के छायानुवाद मान हैं। उदाहरणार्थ तुलनात्मक निम्न अंश अवलोत्रानीय हैं - निश्चय व्यवहाराभ्यां मोक्षमार्गो द्विधास्थितः । तबाद्यः साध्यरूपः स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम् ।। (अमनचन्द्र) सम्यग्दर्शन ज्ञान चरन शिवमग, सो द्विविध विचारो। जो सत्यारथ रूप सो निश्चय, कारण सो व्यवहारो।। (दौलतराम) पथगाराधन मिष्टं दर्शन सहभाबिनोऽपि बोधस्थ । लक्षण भेदेन यतो नानात्वं सम्भवत्यनयोः ॥३२॥ पु. सि. उ. । सम्यग्ज्ञानं कार्य सम्यवत्वं कारणं बदन्ति जिनाः। ज्ञानाराधनमिष्टं तम्यक्त्यानन्तरं नस्मात् ।।३३|| पु. सि. उ.।
१. पुरुषार्थसिद्ध युपाय के ४३ से ५.० तक पद्यों को उद्धृत किया है । २. महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व, प्र., पष्य : ३. तरवार्थमार, उपसंहार, पद्य क्रमांक २ ४, छहढाला, तृतीयाल, पद्य !