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व्यक्तित्व तथा प्रभाव ]
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पं. वृन्दावनदास पर प्रभाव ( १७६१ - १८४८ ईस्वी)- आप अग्रवाल गोयलगोत्री थे। ये काशी निवासी प्रसिद्ध हिन्दी कवि थे । वृन्दावन विलास, प्रबचनसार परमागम (पद्यानुवाद) आदि इनके ग्रन्थ हैं । आपका समय १७६१ - १८४८ ईस्वी है ।' आचार्य अमृतचन्द्र का आप पर गम्भीर प्रभाव पड़ा था। इसके आधार इस प्रकार हैं.
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१. आपने श्राचार्य अमृतचन्द्र कृत प्रवचनसार की तत्त्वप्रदीपिका नामक टीका के आधार पर प्रवचनसार परमागम नाम से पद्यानुवाद की रचना की है। "
२. कवि वृन्दावन ने आचार्य अमृतचन्द्र कृत तोनों संस्कृत टीकाएं जो प्राभृतत्रयी या नाटकत्रयों के नाम से अभिहित है, भलीभांति अवलोकन की थीं 13
३. उन्होंने अपनी रचना "गुरुस्तुति" में आचार्य अमृतचन्द्र की टीकाओं की प्रशंसा की है। उनकी टीकाओं को निजानन्द का प्रवाह बहाने वाली टीका लिखा है यथा :
गुरुदेव अमीइन्दु ने तिनकी करी टीका । भरता है निजानन्द अमीवृन्द सरीका ||
इस प्रकार उपरोक्त उल्लेखों से स्पष्ट है कि पं. वृन्दावनदास भी आचार्य अमृतचन्द्र के व्यक्तित्व तथा उनकी कृतियों से प्रभावित थे ।
पं. सदासुखदास पर प्रभाव ( १७६५ - १६७५ इस्वी ) - पं. सदासुखदास जयपुर निवासी पं. दुलीचन्द कासलीवाल के पुत्र थे । आपका जन्म १७९५ ईस्वी में हुआ था। इनकी निम्न कृतियां उपलब्ध हैं - भगवती आराधना भाषाटीका, अकलंक स्तोत्र, मृत्युमहोत्सव, रत्नकरण्ड श्रावकाचार भाषाटीका, तथा नित्यनियम पूजा । आचार्य अमृतचन्द्र का आप पर प्रभाव था । इन्होंने अपनी टीकाओं में अमृतचन्द्र की कृतियों के उद्धरण प्रमाणरूप में प्रस्तुत किये हैं । रत्नकरण्ड श्रावकाचार के पद्य क्रमांक ५३ की टीका में हिंसा का स्वरूप स्पष्ट करने हेतु आचार्य
१. जैन सिद्धांत कोश, भाग २, पृष्ठ ५८५
२. प्रवचनसार परमागम, पृष्ठ १४ (१६१६ ईस्वी) ३. वही, पृष्ठ २८
४. र.रु. भा. प्र. पृष्ठ ( प म)