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________________ २०८ ] [ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तुं त्व ये शब्द तथा उपरोक्त आधार पं. टोडरमल पर आचार्य अमृतचन्द्र के प्रभाव को स्पष्ट करते हैं । P पं. अथचन्द छाबड़ा पर प्रभाव ( १७६१ - १८२६ ईस्वी) - पंडित जयचन्द छाबड़ा जयपुर निवासी खण्डेलवाल जैन के पंति सदासुखदास के गुरु तथा पं. वृन्दावनदास के समकालीन थे। इनकी अनेक कृतियां उपलब्ध हैं जिनमें परीक्षामुख, प्राप्तमीमांसा पत्रपरीक्षा, सर्वार्थसिद्धि, द्रव्यंसग्रह, समयसार आत्मख्याति, कार्तिकेयानुप्रेक्षा, अष्टपाहुड़ तथा ज्ञानार्णव इनसभी ग्रन्थों परटीकाएं प्रमुख हैं। उनका समय १७६३ से १८२३ ईस्वी हैं । वे आचार्य अमृतचन्द्र से कई प्रकार से प्रभावित थे। १. उन्होंने अमृतचन्द्र की आत्मख्याति टीका पर वचनिका लिखी हे जो अमृतचन्द्र की टीका की रहस्योद्घाटक एवं सर्वजनोपयोगी है । यह वचनिका समस्त हिन्दी टीकाओं में श्रेष्ठ, अध्यात्मरसभरित तथा लोकप्रिय है । उन्होंने प्राचार्य अमृतचन्द्र की टीका आत्मसात् कर ली थी । वे उसके रसिक तो थे ही, साथ ही उसके व्यापक प्रसारक व प्रचारक भी थे। टीका के अन्त में उन्होंने स्वयं निम्न उद्गार व्यक्त किये है - कुन्दकुन्द मुनि किया गाथाबंध प्राकृत हैं. प्राभुत समय शुद्ध आतम दर्शावनू' । सुधाचन्द सूरि करी संस्कृत टीका वर, आत्मख्याति नाम यथातथ्य मन भाव ॥ देश की वचनिका में लिखि जयचन्द्र पढ़, संक्षेप अर्थ अल्पबुद्धि कू' पावनू । पढ़ो सुन मन लाय शुद्धात्मा लखाय, . ज्ञानरूप गहो चिदानन्द दरसावतु || इस प्रकार आचार्य अमतचन्द्र का पं. जयचन्द्र पर गहन प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । १. जैन सिद्धांत कोश, भाग पृष्ठ २२३ २. समयसार प्राभूत (प्रात्मख्याति संस्कृत टीका ) ( फलटण) पृष्ठ ५६३
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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