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व्यक्तित्व तथा प्रभाव ]
[ २०७ मोक्षमार्ग प्रकाशक में उपलब्ध होते हैं। समयसार कलश के १४ पद्य' भी उद्धृत पाते हैं।
३. अनेक स्थलों पर उन्होंने अमलचन्द्र की कृतियों में वणित भावों को हो । शब्दों में या नि है । उपाहारार्थ निम्न अंश प्रस्तुत है:
"एको मोक्षपथो य एष नियतो दुग्ज प्लिवृत्त्यात्मकः" (अमतचन्द्र)२ "सो मोक्षमार्ग एक वीतराग भाव है।" (टोडरमल)३
न चैतदप्रसिद्ध पुरुषगृहीताहारस्योदराग्निना रमरुधिरमांसा दिभावैः परिणाम कारणस्य दर्शनात (अमृतचन्द्र)
जैसे भूख होने पर मुख द्वारा ग्रहण किया हुआ भोजनरूप पुद्गल पिण्ड मांस, शुक्र, शोणित आदि घातुरूप परिणमित होता है ।" (टोडरमल)५
ततः स कर्मनिमित्तं ज्ञानमात्र भूतार्थधर्म नबद्धते । भोगनिमित्तं शुभकर्ममात्रमभूतार्थमेव श्रद्धत्त । ततो अस्य भूतार्थ धर्मश्रद्धानामावात् श्रद्धानमपि नास्ति । (अमृतचन्द्र ।'
तथा कदाचित् सुदेव सुगुरु सुशास्त्र का भी निमित्त बन जाये तो उनके निश्चय उपदेश का प्रधान नहीं करता, व्यवहार श्रद्धान से अतत्त्वश्रद्धानी ही रहता है । (टोडरमल)
४. पं. टोडरमल ने आचार्य अमृतचाद्र के पुरुषार्थ सिद्धयुपाय ग्रन्थ की विस्तृत हिन्दी वनिका लिखी जो उनकी अमृतचन्द्र के प्रति प्रास्था की परिचायक है।
५.५० टोडरमल ने अपनी "रहस्यपूर्ण चिट्ठी' में स्पष्ट छोषित किया है कि वर्तमान काल में अध्यात्मतत्त्व तो प्रात्मख्याति समयसार प्रन्थ की अमृतचन्द्राचार्य कृत संस्कृत टीका में है। १. समयसार कलश क्रमांक ६, २९, ३७, १११, १३०, १३६, १३७, १४२, - १७३, १९६, २०३, २२१, २५४, एवं २५६ २. समयसार फलश २४०
३. मोक्ष मार्ग प्रकाशक, पृष्ठ १४ ४. समयसार, प्रास्मस्थाति टीका गाथा १७९ ५. मोक्ष मार्ग प्रकाशक, पृष्ठ २६ ६ . समयसार गाथा २७५ की टीका ७. मोक्ष मार्ग प्रकाशक, पुण्ठ ५१-५२ ८. रहस्यपूर्ण चिट्ठी पृष्ठ 6