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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
मुनि कुन्दकुन्द कृत मूल जु, सु अमृतचन्द्र टीका करी तसु हेमराज ने वचनिकः उनी अध्याता सी'
इस प्रकार पं. हेमराज पर आचार्य अमृत चन्द्र का प्रभाव प्रगट होता है।
पण्डित टोडरमल पर प्रभाष (१७२०-१७६७ ईस्वो) - पंडित टोडरमल का अधिकांश जीवन जयपुर में बोता, वे पण्डित परम्परामें अग्रणी, बौशिक-ताकिक प्रतिभा के धनी तथा आचार्य कल्प की उपाधि से सम्मानित थे। इनकी प्रमुख कृतियां, सम्यग्ज्ञान चंद्रिका, गोम्मटसार पूजा, त्रिलोकसार टीका, मोक्षमार्गत्रकाशक, आत्मानुशासन भाषा टीका, रहस्यपूर्ण चिट्ठी, और पुरुषार्थसिद्धयुपाय भाषा टीका हैं ।२ इनका समय १७२० से १७६७ ईस्वी निर्णीत है।' पण्डित टोडरमल पर आचार्य अमृत चन्द्र के गहन प्रभाव के निम्न आधार है -
१. उन्होंने अमृतचन्द्र कृत समयसार-प्रवचनसार तथा पंचास्तिकाय की टीकाओं का गम्भीर अध्ययन किया था। उनका पुरुषार्थ सिद्धयुपाय ग्रन्थ तो वे आत्मसात् कर चुके थे। इन ग्रन्थों की स्पष्ट झलक मोक्षमार्ग प्रकाशक में मिलती है ।
२. उन्होंने मोक्षमार्ग प्रकाशक में प्राचार्य अमृतचन्द्र की कृतियों के अनेक प्रमाण अपने विवेचन को सम्पुष्टि हेतु प्रस्तुत किये हैं। उन्होंने तीनों टीकाओं आत्मख्याति, तत्त्वप्रदीपिका एवं समयव्याख्या का ग्रन्थ में सर्वत्र उपयोग किया है। आत्मख्याति के पांच, तत्त्वप्रदीपिका के पांच समयब्याख्या के दो और पुरुषार्थसिद्धयुपाय के तीन उद्धरण
१. प्रषचनसार परमागम-प्रशास्ति, पं. इन्दावन कृत, पद्य १०७, पृष्ठ २२६ २. गं टोडरमल व्यक्तित्व एवं कतं त्व, डॉ. भारिल्ल, पच्छ ७६ ३. वही, पृष्ट ५३ ४. मोक्षमार्ग प्रथम, पृष्ठ ११-१२ ५. समयसार वैभव, प्रश्रम, पृष्ठ १७ ६. समयसार गाथा टीका, कमांक ६, ८, ७३, २७६, २७७ ७. प्रवचनमार गाथा टीका, क्रमांक १२१, २३२, २३६, मादि ८. पंचास्तिकाय गाथा टीका, क्रमांक १३६ ६. पुरुषार्थसिद्धपुपाय, पद्य ६, ७, २९६