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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ] _ [ २०१ तथा ज्ञानहीन क्रिया मोक्षदायी नहीं होती इस सम्बन्ध में भी स्पष्ट लिखा है - 'विलापता पधन दुष्करतरक्षिोन्मुखेः कर्मभिः । क्लिश्यतां च परे महाव्रततपो भारेण भगनाश्चिरम् ॥ साक्षान्मोक्ष इदं निरामयपदं संवेद्यमानं स्वयम् । ज्ञानं ज्ञानगुण बिना कथमपि प्राप्तु क्षमन्ते न हि ॥ उपरोक्त दोनों पद्यों का अनुसरण करते हुये बनारसीदास जी ने हिन्दी पद्यानुवाद इन शब्दों में किया है - "जो नर सम्यकवंत कहावत, सम्यग्ज्ञानकला नहिं जागी । आतम अंग प्रबंध विधारत, घारत संग कह हम त्यागी ।। भेष घरें मुनिराज पटतर, अंतर मोहमहानल दागी । सुन्न हिये करतूति करै, पर सो सठ जीव न होय विरागी ।। तथा आगे वे पुनः लिखते हैं - कोई क्रूर कष्ट सहैं, तपसौं शरीर दहैं, घूम्रपान करें अधोमुख बके भूले हैं। केई महायत गहैं क्रिया में मगन रहैं, बहैं मनिभार पै पयार कैसे प्रले हैं ।। इत्यादिक जीवनि को सर्वथा मुकति नाहि, फिरे जगमाहि ज्यों वयारि के बबूले हैं। जिन के हिए में ज्ञान तिन्ह ही कों निरवान, करम के करतार भरम में भूले हैं ।। डा० जगदीशचन्द्र जैन ने जम्बूस्वामी चरित की प्रस्तावना में लिखा है कि अमृतचन्द्रसूरि के ग्रात्मख्याति समयसार की तरह पं० बनारसीदास ने अपने नाटक समयसार के प्रादि में चिदात्मभाव को नमस्कार करके संसार ताप को शांति तथा अपने मोहनीय कर्म के नाश के लिए उक्त ग्रन्थ की रचना की और उसमें कुन्दकुन्दाचार्य तथा अमृतचन्द्राचार्य का स्मरण किया है । कवि ने अपने ग्रन्थ को आत्मख्याति के ढंग १. समयसार कलश नं. १४२ २. समयसार नाटक, निराहार पथ क्रमांक ८ ३. बाही, पचं कमांक २१
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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