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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ) [ १९६ किये हैं। पं. बनारसीदास ने वे उद्गार पद्यबद्ध किये हैं। जो इस प्रकार हैं अद्भुत ग्रन्थ अध्यातम वानी, सम्झे कोई बिरला ज्ञानी । याम स्याद्वाद अधिकारा, ताकी जो की बिसातारा ।। तो गिरस्थ अति शोभा पावे, वह मन्दिर यहु कलश कहावे । तबचित अमृतवचन गढ़ि खोले, अमृतचन्द्र अचारज बोले ।' पं. बनारसीदास ने अमृतचन्द्र के कलशों एवं भावों को किस प्रकार आत्मसात् करके पद्यरचना द्वारा अभिव्यक्त किया है, उसके कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं - १. एक स्थल पर प्राचार्य ने नवतत्त्वरूप विविध अवस्थाओं में छिपी प्रात्मज्योति को विविषवर्णसमूह में छिपे स्वर्ण से उदाहरत करके विविध प्रकार दिखाई देने वाली कहा, परन्तु पर्याय दृष्टि छोड़कर शुद्धनय रूप द्रव्यदृष्टि से उसे चैतन्य चमत्कार मात्र प्रकाशमान निरूपित किया है । यथा - चिरमिति नवतत्वच्छन्नमुन्नीयमानं, कनकमिव निमग्नं वर्णमाला कलापे । अथ सततत्रिविक्तं दृश्यतामेकरूपं, प्रतिपदमिदमात्मज्योतिरुद्योतमानम् ।। इसी कलश का भावार्थ पण्डित बनारसीदास ने इन शब्दों में संजोया है - जैसे बनवारी में सुधात के मिलाप हेम, ___ नाना भांति भयो पै तथापि एक नाम है । कसिके कसौटी लीकु निरखं सराफ ताहि, वान के प्रवान करि लेतु देतु दाम है || तसे ही अनादि पुद्गल सौं संजोगी जीव, नव तत्त्व रूप में मरूपी महापाम है। दीसे उनमान सौं उद्योतवान् ठौर ठौर, दूसरों न और एक प्रातम ही राम है।' २. इसी तरह निजात्मा का स्वरूप दर्शाते हुए आचार्य अमृतचन्द्र ने लिखा है - १. नाटकस गसार, स्याद्वादद्वार, १, २ २. समयसार कलश, पद्य नं. ८ ३. समयसार नाटक, भोवतार, पद्य' नं .
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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