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________________ जनाचार्यों ने अध्यात्म मूलक ग्रथों का मृजन बड़ी दृढ़ता, मौलिकता एवं शानभव के साथ किया है । जैन अध्यात्म की परम्परा सहस्रों वर्ष प्राचीन है। जैन साहित्य के क्षेत्र में कुन्दकुन्दाचार्य. उमास्वामी. पूज्यपाद, योगीन्दु मणभद्राचार्य, अमृतचन्द्र, शुभचन्द्र. मुनि रामसिंह, और पं. राजमलजीग्रादि बनारसीदास जी के पूर्ववर्ती. यध्यात्म के प्रभावशाली एवं अधिकारी कवि हो गये हैं। उक्तसहसवर्षीय अध्यात्म परम्परा में प्राचार्य अमृतचन्द्र का विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राचार्य कुन्दकुन्द ने अध्यात्म का जो चीज बोया. उसे पन्लवित, पुष्पित तथा फलित करने का श्रेय याचार्य अमृतचन्द्र को ही है । यद्यपि पूज्यपाद, योगीन्दु गुणभद्र आदि प्राचार्यों की प्राध्यात्मिक रचनाओं द्वारा ग्राचार्य कुन्दकुन्द द्वारा प्रतिपादित अध्यात्म एवं दर्शन का प्रचार-प्रसार एवं पोषण हुना, तथापि प्राचार्य अमृतचन्द्र द्वारा जिस यापकता, स्पष्टता एवं गंभीरता के साथ अध्यात्म का प्रचार-प्रसार हुश्रा, वसा सहस्रवर्षीय पूर्वाचार्य परम्परा में संभवतः नहीं हरा है, यात्रार्य अमृत चन्द्र ने अपने परिपूर्ण समर्पित, अध्यात्म रस से ओतप्रोत, असाधारण व्यक्तित्व द्वारा उक्त अध्यात्म एवं तत्त्वज्ञान का व्यापक प्रचार-प्रसार तो किया ही है, साथ ही उसे विकसित. परिष्कृत परिपुष्ट एवं समृद्ध करने में अभुतपूर्व सफलता प्राप्त की है। उनके द्वारा प्रवाहित अध्यात्मसबाह ने उनके परवर्ती प्राचार्यो, विद्वानों एवं अध्यात्मरसिकों की हजार वर्षीय परम्परा को प्रभावित एवं उद्वेलित किया है । संकड़ों रसिक, प्राचार्य अमृतचन्द्र की अध्यात्मगंगा में अवगाहन करने को उत्सुक हो उठे, अनेक विद्वानों को कलमें अमृतचन्द्र द्वारा प्रदर्शित मार्ग को चित्रित करने के लिए उठ गईं तथा हजारों भव्यात्माएं शुद्धात्मतत्व के प्रकाश में निजात्मतत्त्व को निहारने में संलग्न हो गई। इस सम्बन्ध में पं. कलाजचन्द्र शास्त्री के शब्द उक्त तथ्य के प्रमाणीकरण हेतु पर्याप्त हैं । वे लिखते हैं : - ऐसा प्रतीत होता है कि कुन्दकुन्द के ग्रंथों पर जन आचार्य अमृतचन्द्र की टीकानों ने अध्यात्म की त्रिवेणी प्रवाहित कर दी, तो उसमें अवगाहन कर के अपना और दूसरों का ताप मिटाने के लिए अनेक ग्रंथकार उत्सुक हो उठे । प्राचार्य वृन्दकुन्द के अध्यात्म में प्राचार्य पूज्यपाद का ध्यान आकृष्ट किया और उन्होंने समाधितंत्र तथा इष्टोपदेश जैसे सुन्दर, मनोहार प्रकरण प्रथ - - १. कविवर बनारसदासजी : जीवनी और कृतित्व पृ० १६१ (xxiii )
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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