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________________ कि श्रमणधारा के प्राद्यप्रवर्तक प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे तथा पश्चादवर्ती चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर तक सभी तीर्थंकर श्रमणधारा के उन्नायक, सम्पोषक, सम्वर्द्धक एवं सम्प्रसारक थे । तीर्थंकरों की उक्त धमणधारा में साततत्त्व, नवपदार्थ पंचास्तिकाय षड्व्य, रत्नत्रय, अनेकान्त-स्याद्वाद, नय-प्रमाण. निश्चय-व्यवहार, निमित्त-उपादान, कर्ता-कर्म, कारण-कार्य, पुण्य-पाप, द्रव्य-गुण-पर्याय इत्यादि दार्शनिक तत्वों की गंभीर विवेचना की गई है । उपरोक्त तत्त्वों के परिज्ञानपूर्वक सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रुप त्रयात्मक मार्ग द्वारा परमकल्याण स्वरूप मुक्ति की प्राप्ति होती है। उक्त उत्कृष्ट सुख की प्राप्ति का ही लक्ष्य प्रत्येक प्रात्महितैषी का होना चाहिये । प्रात्महितैषी जनों तक तीर्थंकरों की उक्त परमकल्याणी वाणी को पहुंचाते रहन का कार्य प्राचार्य परम्परा द्वारा ही सम्पन्न होता रहा है । माचार्य परम्परा से प्राप्त मौखिक ज्ञान को लिपिबद्ध करके उसे स्थायित्व प्रदान करना, सूत्रगत भागों का विशद स्पष्टीकरण करने हेतु टीकानों, भाष्यों तथा मौलिक ग्रंथों की रचना करना तथा तत्वज्ञान एवं सिद्धांतों का प्रचार प्रसार करना प्राचार्य-परम्परा का विशिष्ट कार्य रहा है । जैनाचार्यों या चित काल काय विस्तत जमा भीर है। इसे पागम भाषा में श्रुत ज्ञान कहा जाता है। उक्त समग्र श्रुतज्ञान को प्राचार्यों ने प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग तथा द्रव्यानुयोग इन चार अनुयोगों के द्वारा परिपुष्ट, प्रकटित एवं प्रसारित किया है। यद्यपि इन चारों अनुयोगों का मूलस्रोत अध्यात्म ही रहा है, तथापि द्रव्यानुयोग विषयक साहित्य में अध्यात्म-निरूपण का बाहुल्य है । ऐसे अध्यात्मबहुल वाङमय की सृष्टि आचार्यों ने बड़ी कुशलता, विद्वता तथा प्रात्मानुभव प्रचुरता के साथ को है 1 डॉ. रवीन्द्र जैन के शब्द उक्त तथ्य के प्रकाशक हैं। वे लिखते हैं कि १. पंचास्तिकायापदन्ध - प्रकारेण प्ररूपणम् । पूर्व मुलपदार्थानामिह सूत्रकृता कृतम् ।।४ । जीवाजीवदिपर्यायरूपाणां चित्रवर्मनाम् । ततो नवपदार्थानां व्यवस्था प्रतिपादिता ।। ५ ।। तनस्तत्वपरिजानपूर्वेस गितयात्मना । प्रोक्ता मार्गेश कल्याणी मोक्षप्राप्तिरपपिचमा ।। ६ ॥ . -पंचास्तिकाय, समयल्याख्या (xxii )
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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