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व्यक्तित्व तथा प्रभाव ]
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सुखमचलमहिसा लक्षणादेव धर्मात्, भवति विधिरशेषोऽप्यस्य शेषोऽनुकल्पः । इह भवगहनेऽसावेद दुर दुरापः, प्रवचनवचनानां जीवितं चायमेव ।।'
५. कर्ता-कर्म आदि का भेद व्यवहारदृष्टि में कहा गया है परन्तु निश्चयदृष्टि से तो कर्ता-कर्म के भेद दो पदार्थों में घटित न होकर एक ही में घटित होते हैं यथा -
व्यावहारिक-दर्शव केवलं, कत-कर्म च विभिन्न मिष्यते । निश्चयेन यदि वस्तु चिन्त्यते कतुं कर्म च सदकमिष्यते ॥(अमृतचन्द्र) इसी सिद्धांत को लगभग इन्हीं शब्दों में . आशाघर लिखते हैं -
काद्या वस्तुनो भिन्ना येन निश्चयसिद्धये।
साध्यन्ते व्यवहारोऽसौ निश्चयस्तदभेददक ॥ इस प्रकार आचार्य अमृतचन्द्र का गम्भीर प्रभाव पं० आशाघर पर स्पष्टतः प्रकट होता है ।
पण्डित राजमल्ल पाण्डे (ईस्वी १५४६-१६०५) - आप मगध देश के विराटनगर में बादशाह अकबर के समय में निवास करते थे। आप काष्ठासंघी भट्टारकों की आम्नाय के पंडित थे । पं० बनारसीदास ने इन्हें "पाण्डे" राजमल्ल नाम से उल्लिखित किया है । आपकी कृतियों में अमृतचन्द्राचार्य कृत प्रात्मख्याति समयसार कलश टीका की रदारी हिन्दी भाषा में बालबोध टीका, पिंगल ग्रन्थ-छंदोविद्या, पंचास्तिकाय टीका, लाटी संहिता, पंचाध्यायी, जम्बुस्वामीचरित्र तथा अध्यात्मकमलमार्तण्ड मुख्य हैं। इनका समय ईस्वी १५४६-१६०५ है।
१. पंडित राजमल्ल पाण्डे आचार्य अमृतचन्द्र को कृतियों के मर्मज्ञ, तथा रसिकः विद्वान थे । अमृतचन्द्र के व्यक्तित्व का विशेष प्रभाव एवं उनकी कृतियों का प्रभुत्व राजमल्ल की कृतियों पर था । इस सम्बन्ध में पंडित बनारसीदास ने अपने ग्रन्थ नाटक समयसार में पाण्डे राजमल्ल की समयसार मर्मज्ञता का उल्लेख किया है । यथा -
पाण्डे राजमल्ल जिनधर्मी, समयसार नाटक के मर्मी।
तिन हि ग्रन्थ की टीका कीनी, बालबोध सुगम करि दीनी ॥५ - --- - - १. अनगार धर्मामृत, अध्याय षष्ठ, श्लोक ८१ । २. समयसार कलश, क्रमांक २१० ३, प्रनगार धर्मामृत, अध्याय प्रथम, पद्य नं. १०२ ४. जैनेन्द्रसिद्धांतकोश, भाग३ पृष्ठ ४१४ ५. समयसार नाटक, मंतिमप्रशस्ति, पद्य नं. २३
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