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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
पुरुषार्थसिद्ध्य पाय के १६ पद' समयसार कलश के १४ कलश, तत्वार्थसार का अधिकार २ का ५८ श्लीक तथा प्रबचनसार की तत्त्वप्रदीपिका टीका का एक पद प्रमाणरूप में उद्धत किया है। इससे अमृतचन्द्र के व्य' लादक सहता है।
२. पाशाधर ने अमृतचन्द्र के ग्रन्थों से पदों को उद्धत ही नहीं किया है अपितु कुछ पद्यों को शाब्दिक परिवर्तन के साथ प्रस्तुत कर अपने ग्रन्थ में समाहित किया है। उन पद्यों में अधिकांश साम्य भी पाया जाता है । ऐसे साम्यदर्शक पद्यों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं -
निश्चयमिह भूतार्थ व्यवहारं वर्णयन्त्यभूतार्थम् । भूतार्थ बोधविमुखः प्रायः सवोऽपि संसारः ।। (अमृतचन्द्र ) व्यवहारमभूतार्थं प्रायो भूतार्थ विमुखजन मोहात् । केवलमुपयुजानो व्यंजनवद् भ्रश्यति स्वार्थात् ।। (पं. प्राशाधर)५
एक स्थल पर अमृतचन्द्र लिखते हैं कि जो जीव निश्चय के स्वरूप को न जानकर उसको ही निश्चय से अंगीकार करता है वह मूर्ख बाट क्रिया में आलसी है और बाह्य क्रिया रूप प्राचरण का नाश करता है । इसी अभिप्राय का समर्थन एवं पुनरावृत्ति पं. आशाघर भी करते हैं। दोनों के मूल कथन इस प्रकार हैं -
निश्चयमबुध्यमानो यो निश्चयतस्तमेव संश्रयते। नाशयति करणचरणं स बहिः करणालसो बालः ।। (अमृतचन्द्र) व्यवहारपराचीनो निश्चयं यश्चिकीर्षति । बीजा दिना बिना मुढ़ः स सस्यानि सिसृक्षति ॥ (पं. आशाधर)
१. पुरुषार्थ सिद्ध युपाय के क्रमशः १६ पद इस प्रकार उन त है-पद्य नं. २२०, २११,
२२५, ३४, ३३, ३२, २६, २७, २८, २९, ३०, ४६, ४८, ४२, ६६, १११,
११२, ११३ तथा ११४ २. समयसार कलश के १४ कलश क्रमशः १६४, २०५, १३१, ११०, २४, २२५,
२२६, २२७, २२८, २२६, २३०, २३१, २१४ तथा १११ हैं। ३. प्रवचनसार, चरणानुयोगचूलिका (तत्त्वप्रदीपिका टीका) पद्य क्रमांक १३ ४. पुरुषामिद्ध युपाय, पद्य नं. ५ ५.. अनगारधमामृत, अध्याय प्रथम, पच नं. १६ ६. पुरुषार्थ सिख युपाय, पद्य नं. ५ ७. अनगारधर्मामृत, अध्याय प्रथम, पद्य नं. १००