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व्यक्तित्व तथा प्रभाव ]
[ १९१ १. उनका सिद्धांतसार संग्रह ग्रंथ प्राचार्य अमृतचन्द्र के तत्त्वार्यसार की शैली पर रचा गया है। .
२. सम्पूर्ण ग्रन्थ तत्त्वार्थसार की भांति संस्कृत के अनुष्टुप् छंदों में शिक्षा गया है।
३. सिद्धांतसार रचने की प्रेरणा नरेन्द्रसेन ने अभूतचन्द्र के तत्त्वार्थसार से ग्रहण की । इस सम्बन्ध में पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री ने भी अपना समर्थन व्यक्त करते हये लिखा है कि दोनों ग्रन्थों के अंतर्परीक्षण एवं तुलना करने से पता चलता है कि नरेन्द्रसेन को तत्त्वार्थसार से सिद्धांतसार रचने की प्रेरणा मिली । नरेन्द्रसेन के पूर्वज जयसेन ने तो अपने धर्मरत्नाकर में अमृतचन्द्र का पुरुषार्थसिद्ध्यपाय का अधिकांश भाम उद्धत किया है । यद्यपि नरेन्द्र सेन ने ऐसा नहीं क्रिया परन्तु अपने सिद्धांतसार में प्रकारान्तर से तत्त्वार्थसार को अपना लिया है। दोनों ग्रन्थों के नामकरण में भी भावसाम्य है।'
पंडित प्राशाधर पर प्रभाव (११७३-१२४३)- आपका जन्म नागौर के पास माण्डलगढ़ में हुआ था, परन्तु' बादशाह शहाबुद्दीन के अत्याचार के कारण मालवा देश की धारानगरी में रहने लगे । आपके पिता सल्लक्षण तथा माता रत्नो बघेरवाल जाति के थे। आप उच्चकोटि के विद्वान तथा पं० आशाधर नाम से प्रसिद्ध थे। आपका समय ईस्वी ११७३ से १२४३ था। आपकी लगभग २० कृतियाँ उपलब्ध होती हैं उनमें सागार घर्मामृत, अनगारधर्मामृत, अध्यात्मरहस्य, इष्टोपदेश टीका, भगवती आराधना टीका, सहस्रनाम आदि उल्लेखनीय थे ।'
आप आचार्य अमृतचन्द्र के व्यक्तित्व तथा कृतित्व से प्रभावित थे । इसके कुछ माघार इस प्रकार हैं -
१. पाशाघर ने अपनी कृतियों में अमृतचन्द्र की कई कृतियों के उद्धरण अपने तत्वनिरूपण की पुष्टि हेतु प्रमाणरूपेण प्रस्तुत किये हैं। उदाहरण के लिये अनगार धर्मामृत ग्रन्थ में प्राशाधर ने अमृतचन्द्र के
१. जनसाहित्य का इतिहास, भाग २ पृष्ठ ३५५ २. जनेन्द्र सिद्धांतकोश-भाग प्रथम-पृष्ठ २६४