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[ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
माइलधार (१३६.६२४६ ईपी) ... नाचवल ने अपने ग्रन्थ की अन्तिम गाथाओं में प्राचार्य देवसेन (८६३-६४३ ईस्वी) को अपना गुरु घोषित किया है। उनकी एकमात्र कृति नयचक्र है। उक्त ग्रन्थ में द्रव्यसंग्रह तथा पद्मनंदिपंचविंशति के एकत्यसप्तति से कुछ उद्धरण प्रस्तुत किये गये हैं। उनका समय ११३६ और १२४३ ईस्वी के बीच का है।' नयचक्र का दूसरा नाम द्रव्य स्वभाव प्रकाशक भी है। उक्त ग्रन्थकर्ता माइल्लघवल पर प्राचार्य अमृतचन्द्र का प्रभाव पड़ा था। इसके कुछ आधार इस प्रकार हैं --
दसवीं ईस्वी सदी में आचार्य अमृतचन्द्र की टीकाओं की रचना होने पर विभिन्न लेखकों ने अपनी रचनाएं की। तत्पश्चात भाइलघवल ने भी द्रव्यस्वभाव प्रकाशक अपरनाम नयचक्र नामक ग्रन्थ रचा और उसमें नयों के विवेचन के साथ अध्यात्म का भी विवेचन किया ।' उक्त विवेचन में उन्होंने अमृत चन्द्रकृत पंचास्तिकाय की संस्कृत टीका से भी कुछ उपयोगी विषयवस्तु ग्रहण की। डॉ, हीरालाल एवं डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने उक्त आशय का समर्थन करते हुए लिखा है कि द्रव्यस्वभाव प्रकाशक ग्रन्थ संस्कृत में अनवाद मात्र नहीं है, प्रत्यत इसमें कुन्दकुन्द के समयसार तथा उसकी अमृतचन्द्र कृत टीका के उपयोगी अंश पाये जाते हैं।
अत: आचार्य अमृतचन्द्र का प्रभाव माइलधवल पर भी स्पष्ट प्रतीत होता है।
नरेन्द्रसेन पर प्रभाव (१०६८ ईस्वी) - लाड़बागड़ संध की गुर्वावलि के अनुसार आप गुणसेन के शिष्य, उदयसेन के सघर्मा और गुणसेन द्वितीय, जयसेन द्वितीय तथा उदयसेन द्वितीय के गुरु थे। इनको कृति का नाम सिद्धांतसारसंग्रह है। इनका समय ईस्वी १०६८ है। नरेन्द्रसेन अमृतचन्द्र आचार्य से प्रभावित थे - इसके कुछ आधार इस प्रकार हैं -
१. नयचक्र, माहल्लघवल कृत का "जनरल एडीटोरियल", पृष्ठ ६-७ २. द्रव्यस्वभाब प्रकाशक (नयचक्र)-प्रस्तावना, पृष्ठ २१ ३. बही-ज'जनरल एडीटोरियम" पृष्ठ ७ i. e. This is not just a Sanskrit rende
ring but contains useful moatter from the samayasara (of Kundakunda and
Aurtachandra's exposition of the same." Page-7. ४. जैनेन्द्रसिद्धांतकोश,भाग २ पृष्ठ ५७६