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________________ Re Rece व्यक्तित्व तथा प्रभाव ] [ १८६ कहकर प्रमाण रूप में प्रस्तुत किया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि ब्रह्मदेव अमृतचन्द्र को प्रमाण रूप में स्वीकार करते हैं । २. पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री लिखते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों पर आचार्य अमृतचन्द्र की टीकाएँ रचे जाने पर उनके बाद के विद्वानों और विद्यारसिक ग्रन्थकारों का ध्यान विशेष रूप से कुन्दकुन्द के साहित्य को ओर आकृष्ट हुआ था। ब्रह्मदेव की द्रव्यसंग्रहीका भी इसका एक उदाहरण है ।" इस प्रकार आचार्य अमृतचन्द्र का प्रभाव ब्रह्मदेवसूरि पर भी प्रकट होता है । कवि उड्डा पर प्रभाव (६६८ ईस्वी) ये संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। इनका निवास स्थान चित्तौड़ था। इनके पिता का नाम श्रीपाल था । ये पोरवाल जाति के थे। इनकी एक मात्र कृति संस्कृत "पंचसंग्रह" है । कवि उड्दा अमृतचन्द्रसूरि के बाद तथा के तथा श्रमितगति के पूर्व के विद्वान हैं। इनका समय वि. सं. १०५५ ( ईस्वी ६६८ ) है । कवि डड्ढा आचार्य अमृतचन्द्र से प्रभावित थे। इसका आधार निम्नानुसार है - - उड्ढा ने अपने ग्रन्थ पंचसंग्रह में अमृतचन्द्र के ग्रन्थ के पथ को अपने कथन के समर्थन में "उक्तं च" रूप से प्रस्तुत किया है। अमृतचन्द्र ने लिखा है कि "सोलह कषाय व नी नोकषाय" कहीं गई है। इनमें जो किचित् भेद है, वह नहीं गिना जाता है इसलिए दोनों मिलाकर पच्चीस कषाय कहलाती है। उनका मूल पद्य इस प्रकार है - षोडशव कषायाः स्युनकषाया नवेरिताः । ईषद्भेदो न भेदोऽत्र कषायाः पंचविंशतिः ॥ ३ अमृतचन्द्र के उक्त पद्य को डड्ढा ने अपने ग्रन्थ पंचसंग्रह के प्रकृतिसमुत्कीर्तन अधिकार में उद्धृत किया है । * इस तरह अमृतचन्द्र का प्रभाव डड्ढा पर भी पड़ा है। १. जैन संदेश शोधांक २५, लेख पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, पृष्ठ ७ (अक्टूबर ६७ ) २. राजस्थान का जैन साहित्य, पृष्ठ २७-६८ ३. तत्त्वार्थसार, बंधाधिकार, पद्य क्रमांक ११ ४. जैन संदेश शोधांक- २६ (२६ फरवरी, १९६८ )
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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