________________
१०० ]
[ प्राचार्य अमृतचन्द्र व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
बन्धो निबन्धनं चास्य हेयमित्युपदर्शितम् । यस्याशेष-दुःखस्य यस्माद्बीजमिदं द्वयम् ||४|| चैतदुपादेयमुदाहृतम्
मोक्षस्तत्कारणं
उपायेवं सुखं पश्यामाविर्भविष्यत ॥५॥ रामसेन ) ' अन्यत्र अमृतचन्द्र ने निश्चय व व्यवहार की अपेक्षा से मोक्षमार्ग का निपण दो प्रकार करते हुए, उनमें निश्चय को साध्य तथा व्यवहार को साधन के रूप में निरूपित किया है। इन्हीं शब्दों की पुनरावृत्ति रामसेन ने की है। उनके साम्यदर्शक पद्य निम्नानुसार है -
निश्चयव्यवहाराभ्यां मोक्षमार्गों द्विषा स्थितः ।
મ
3
तत्राद्यः साध्यरूपः स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम् ॥ ( अमृतचन्द्र ) २ भोक्षहेतुपुत्र घा निश्चयाद् व्यवहारतः 1 तत्राऽद्यः साध्यरूपः स्याद् द्वितीयस्तस्य साधनम् || ( रामसेन ) ३ उपयुक्त प्रमाणों से यह बात प्रमाणित हो जाती है कि आचार्य अमृतचन्द्र का प्रभाव मुनिरामसेन पर भी था ।
ब्रह्मदेवसूरि पर प्रभाव (१२६२-१३२३ ईस्वी) आप बालब्रह्मचारी थे, इसी से आपका नाम ब्रह्मदेव पड़ा। आप समयसार के टीकाकार जयसेन के सघर्मा थे क्योंकि उनकी उपदेश शैली से ब्रह्मदेव की शैली में अत्यधिक साम्य दिखाई देता है। इनका समय ईस्वी १२६२ से १३२३ है । इनकी कृतियों में द्रव्यसंग्रहटीका, परमात्मप्रकाशटीका, तत्त्वदीपक ज्ञानदीपक, त्रिवर्णाचार दीपक, प्रतिष्ठातिलक आदि मुख्य हैं | आचार्य अमृतचन्द्र के पश्चात् होने वाले ब्रह्मदेव पर उनके व्यक्तित्व का प्रभाव था, जिसके निम्न प्राधार हैं।
1
१. ब्रह्मदेव ने अपनी परमात्मप्रकाशटीका में अमृतचन्द्र के ग्रन्थ पुरुषर्थसिद्धयुपाय से २९६ वा पद्म "दर्शनात्मविनिश्चितिरात्मपरिज्ञानमिष्यते बोधः । इत्यादि पद्य उद्धृत किया है।" यह पद्य " तथा चोक्तम्"
१. तत्त्वानुशासन पद्य क्रमांक ४ तथा ५
२. तत्त्वार्थसार उपसंहार, पद्य नं. २
-
३. तत्त्वानुशासन पद्य क्रमांक २८ ४. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, पृष्ठ २०५ ५. परमात्म प्रकाश गाथा ६६ की टीका