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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ) [ १८७ उपरोक्त सभी प्रमाणों एवं आधारों पर अमृतचन्द्र का प्रभाव जयसेन पर अत्यंत स्पष्ट हो जाता है। मुनिरामसेन पर प्रभाव (बारहवी-तेरहवी सदी ईस्वी):- रामसेन नाम के अनेक व्यक्ति हुए हैं। उक्त मुनि रामसेन तत्त्वानुशासन नामक ग्रन्थ के कर्ता हुए हैं जिनका समय ईसा की बारहवीं-तेरहवीं सदी है।' जयसेनाचार्य से पूर्व तत्त्वानशासनकार रामसेन अमृतचन्द्र की टीकाओं से परिचित एवं प्रभावित थे। उन्होंने जो निश्चय-व्यवहार का कथन किया है, वह अमृतचन्द्र के द्वारा प्रदनित दिशा के अनसार ही है। तत्त्वानुशासन पर अमृतचन्द्राचार्य के तत्त्वार्थसार तथा समयसार आदि टीकाओं का प्रभाव पड़ा है, उनकी यक्ति पुरस्सर शैली को अपनाया गया है। इतना ही नहीं अमित मिश्चा सौर व्यवहार होगा + दृष्टि को अमृतचन्द्र की भांति साथ लेकर चला गया है। अमृतचन्द्र की कथनशैली एवं तत्वदृष्टि के अतिरिक्त तत्त्वानुशासन में तात्विक एवं साहित्यिक अनुसरण भी पाया जाता है जिसके कुछ प्रमाण इस प्रकार हैं - ___आचार्य अमृतचन्द्र में सात तत्त्वों में हेय तथा उपादेयपने का वर्णन करते हुए लिखा है कि उपादेय तत्त्व जीव तथा हेय तत्त्व अजीव हैं। हेय का उनादान हेतु आस्रव हैं तथा हेय का उपादान रूप बंध है। हेय के नाश (हान) का हेतु संवर व निर्जरा है और हेय के परिपूर्ण नाश रूप मोक्ष तत्व है। इसलिए उक्त सातों तत्वों का निरूपण किया गया है। इसी का अनुकरण करते हुए रामसेन ने बन्ध और उसके कारण आम्रव को हेय तथा मोक्ष और उसके कारण संवर-निर्जरा को उपादेय तत्त्व निरूपित किया है। उक्त दोनों विद्वान आचार्यों के मूल शब्द इस प्रकार हैं - उपादेयतया जीवोऽजीवो हेयतयोदितः । हेयस्मास्मिन्नुपादान हेतुत्वेनास्रवः स्मृतः ।। हेयस्यादानरूपेण बन्धः स परिकीर्तितः । संवरो निर्जरो हेयहानहेतुतयोदिती ।। हेयप्रहाणरूपेण मोक्षो जीवस्त्र दशितः।। (अमृतचन्द्राचार्य) १. जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, भाग ३, पृष्ठ ४१% २. जनसंदेश शोघांक, अक्टूबर १९५६, पुष्ट १० ३. तत्त्वार्थसार, प्रथम अधिकार, पद्य क्रमांक ७ एवं
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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