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व्यक्तित्व तथा प्राय ।
[ १८१ १. उन्होंने अमृतचन्द्र की प्रौढ़तम गद्यशैली का अनुकरण किया है । जिस प्रकार अमृतचन्द्र प्रत्येक गाथा को टीका रचना के पूर्व गाथा की उत्थानिका या पूर्वसूचना देते हैं, उसी तरह पद्मप्रभ भी उत्थानिका पूर्वक टीका रचते हैं। उदाहरण हेतु - "अत्र शब्दज्ञानार्थरूपेण त्रिविधामिधयेता समयशब्दस्य लोकालोक विभागश्चाभिहितः।" "अत्र पंचास्तिकायानां विशेषसंज्ञा सामान्यविशेषास्तित्वं कायत्वं चोक्तम ।" 'अत्रास्तित्वस्वरूपमुक्तम्"3 "अत्रनियमशब्दस्य सारत्वप्रतिपादनद्वारेण स्वभावरत्नत्रयस्वरूपमुक्तम्"४ "व्यववहार सम्यक्त्वस्वरूपाख्यानमेतत्"५ "परमागमस्वरूपाख्यानमेतत्" इत्यादि ।
पद्मनंदि ने अमृतचन्द्र की गद्यशैली का अनुकरण हो नहीं किया, अपितू कहीं कहीं तो अमतचन्द्र की टीका के मूल शब्दों एवं भावों को ज्यों का त्यों अपनी टीका में समाहित कर लिया है। उदाहरण के लिए अमृतचन्द्र ने नय के सम्बन्ध में स्पष्ट करते हुए लिखा है - "दो हि नयी भगवता प्रणीतौ - व्याथिक: पर्यायाथिकश्च । तत्र न खल्वेकनयायत्ता देशना किन्तु तदुभयायत्ता 1 ततः पर्यायार्थदेशादस्तित्वे स्वतः कथञ्चिद्भिन्नेऽपि व्यवस्थिताः, द्रध्यार्थादेशात्स्वयमेव सन्तः सतोऽनन्यमया भवन्तीती।"" इसी टीका का अनुकरण करते हुए पद्मनंदि लिखते हैं - "इह हि नयद्धयस्थ सफलत्वमुक्तम् । द्वौ हि नयौ भगवदर्हत्परमेश्वरेण प्रोक्तौद्रव्याथिकः पर्यायाधिकश्चेति । द्रव्यमेवार्थः प्रयोजनमस्येति' द्रव्याथिकः । पर्याय एवार्थः प्रयोजनमस्येति पर्यायाथिकः । न खलु एकनयायस्तोपदेशो ग्राह्यः, किन्तु तदुभयायत्तोपदेशः । सत्तानाहकशुद्धद्रव्याक्षिकनयबलेन पूर्वोक्त व्यंजनपर्यायेभ्यः सकाशान्मुक्तामुक्तसमस्त जीवराशयः सर्वथा व्यतिरिक्ता एव ।
१ पंचास्तिकाय गाथा ३ की टीका | २. वहीं गाथा ४ की टीका । ३. वही, गाथा ८ की टीका । ४. नियमसार, गाथा ३ की टीका । ५. वही, गाथा ५ की टीका। ६. वही, माथा ८ को टीका । ७. पंचास्तिकाय, गामा ४ की टीका। ८. नियमसार, गाथा १६ की टीका ।