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________________ १८० ] [ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व तथा कर्तृत्व कदाचित्प्रतमृदुमृदङ्ग रङ्ग मधिवसन्तिवलासिनीनामति चतुर करण बन्धबन्धमनङ्गतन्त्र शिक्षाविचक्षण विटविदूषकारिषदुपास्यं, लास्यमवालोकिष्ट । कदाचिदनुगतवीणावेणुरणितरमणीयं रमणीयानां गतिमाकर्णयन्कर्णपारणामकार्षीत् । कदाचिकिचकुसुमप रिमलतरल मधुकर कलरवमुखरिते लतामण्डपे विरचितनवकिसलयम शयने कुशोदरीमरीरमत् ।" (वादीसिंह)' ३. उपमार्थे "इव" प्रयोग - यदि पुनर्न तेषां दुख स्वाभाविकमभ्युपगम्येत् तदोपशान्तशीतज्वरस्य संस्वेदनमिव, प्रहीणदाहज्वरस्यारनालपरिषेक इव, निवृत्तनेत्र संरम्भस्य च वटाचूर्णावचूर्णमिव, विनष्टकर्णशू नस्य बस्तमूत्रपूरण मिब, रूढ़वणस्यालेपनदानमिव विषय व्यापारो न दृश्येत । दृश्यते चासो । ततो स्वभावभूतदुःखयोगिन एव जीबदिन्द्रियाः परोक्षज्ञानिनः । । अमृतचन्द्र)२ स चेन्न स्याबीहिखंडनायास इव तन्डुलत्यागिनः, कूपखननप्रयास इव नीर निपेक्षिणः, कर्णशुक्तिरिव शास्त्रसुश्रुषापराङ मुखस्य , द्रविणार्जन क्लेश इव वितरणगुणानभिज्ञस्य, तपस्याश्रम इव नैरात्म्यवादिनः, शिरोमारघारणश्रान्ति रिव जिनेश्वर चरणप्रणाम बहुमतिबहिष्कृतस्य, प्रवज्याप्रारम्भ इवेन्द्रियदासस्य विफल सकलोप्यये प्रयासः स्यात् । (वादीभसिंह) इस प्रकार आचार्य वादीभसिंह पर भी आचार्य अमृतचन्द्र की रचनाशैली आदि का तथा व्यक्तित्त्व का प्रभाव प्रगट होता है । पद्मप्रभमलबारी देव पर प्रभाव (११४० - ११८५ ईस्वी) पद्मप्रभमलघारी देव एक आध्यात्मिक दिगम्बर साघु थे । उनकी एक मात्र कृति निमयसार ग्रन्थ की तात्पर्यवृत्ति नामक टीका है। इनका समय ईस्वी ११४०-११८५ था । आप आचार्य अमृतचन्द्र के पदानुगामी आचार्य थे । नियमसार की टीका रचने में आपने अमृतचन्द्र की अनोखी आध्यात्मिक शैली को ही आदर्श एवं आधार बनाया है। वे अमृतचन्द्र से कई प्रकार से प्रभावित थे। जिसके कुछ प्रमाण निम्नानुसार हैं। १. गद्यचिंतामणि, प्रथम लम्भ, पृष्ठ ४२ २. प्रवचनसार, तत्त्वदीपिका, गाथा ६४ की टीका ३. गद्यचितामणि, द्वितीयो लम्भ, पृष्ठ १०२। ४. जैनेन्द्र सिद्धांतकोश, भाग ३, पृष्ठ १०
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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