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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ] [ १७६ उक्त उद्धरण से स्पष्ट संकेत मिलता है कि आचार्य अमृतचन्द्र का आचार्य शुभचन्द्र पर प्रभाव रहा है। आचार्य वादसिंह पर प्रभाव ( १०१५ ११५० ईस्वी) प्राचार्य वादीभसिंह संस्कृत के महाकवियों में अग्रगण्य थे। संस्कृत गद्यकारों में जो स्थान महाकवि बाणभट्ट का है, वही स्थान जैन संस्कृत गद्य लेखकों में प्राचार्य वादीभसिंह का है। उन्होंने "गद्यचितामणि" नामक उत्कृष्ट ग्रन्थ लिखकर जैन संस्कृत गद्यकाव्य को श्रमरत्व प्रदान किया है । उनका अपरनाम ओडयदेव था । वादीभसिंह उनका उपनाम या उपाधि थी ।' उनका समय १०१५ से ११५० ईस्वी है । वादीभसिंह पर आचार्य अमृतचन्द्र का प्रभाव निम्न आधारों से प्रतीत होता है - - १. " गद्यचितामणि" की स्वोपज्ञ टीका के प्रारम्भिक पद्य में तथा श्राचार्य अमृतचन्द्र कृत समयव्याख्या टीका के आरम्भिक पद्य में शब्द साम्य तथा भावसाम्य झलकता है। उशहरणार्थ निम्न पच अवलोकन है - दुर्निवारनयानीक विरोधध्वंसनोषधिः 1 3 स्यात्कार जीविता जीयाज्जैनी सिद्धांत पद्धतिः ॥ ( अमृतचन्द्र ) अशेषभाषामय देहधारिणी जिनस्यवक्त्राम्बुरुहाद् विनिर्गता | सरस्वती में कुरूतादनश्वरों जिनश्रियं स्यात्पदलाञ्छनाञ्चिता ॥ (वादीभसिंह) २. जिसप्रकार अमूलचन्द्र की टीकाएं प्रौढ़-गम्भीर गद्यशैली से मत हैं उसी प्रकार वादी सिंह को गद्यचतामणि" रचना भो प्रौढ़, गम्भीर गद्यशैली से समन्वित है । उदाहरणार्थ निम्न गद्यांश दृष्टव्य है - "कदाचित्किञ्चिद्रोचमानाः, कदाचित् किञ्चिद्विकल्पयन्तः, कदाचित्किञ्चिदाचरन्तः, दर्शनाचरणाय कदाचित्प्रशाम्यतः कदाचित्सं विजमानाः कदाचिदनुकम्पमानाः कदाचिदास्तिक्यमुद्वतः:------- । (घमृतचन्द्र ) १. ती. म. उ. श्री. प. आग ३ पृष्ठ २७ २. जैन सि. को, भाग २, पृष्ठ ५४२ ३. पंचास्तिकाय, समयव्याख्या टीका, पद्य २ ४. गद्यचितामणि टीका, पद्म ४ ५. पंचास्तिकाय गाया १७२ की टीका
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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