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________________ १७८ ] [ प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तुं त्व परपदार्थ के साथ मेरा सम्बन्ध भी नहीं है, ऐसा मेरा दृढनिश्चय है। उपयुक्त आशय के द्योतक दो पद्य इस प्रकार हैं - नास्ति सर्वोऽपि सम्बन्धः परद्रव्यात्मतत्त्वयोः । कर्तृ-कर्मत्वसम्बन्धाभावे तत्कर्तृता कृतः ॥ (अमृतचन्द्र)' प्रहं चैतन्यमेवेकं नान्यत्किमपि जातचित्, सम्बन्धोऽपि न केनापि दृढ़पक्षो ममेदृशः ॥ (पद्मनंदि) इस प्रकार अन्य अनेक स्थल उदाहरण योग्य हैं जिनसे स्पष्ट प्रमाणित होता है कि पद्मनंदिपंचविंशतिः ग्रन्थ की रचना के प्रमुख स्रोत अमृतचन्द्र के पुरुषार्थसिद्धयुपाय तथा समयसार की आख्यातिकलशयुक्त टीका को कहना उचित प्रतीत होता है। साथ ही "अमृतचन्द्र की कृतियों का प्रा सचार्य पदमा या उनकी कृतियों पर पड़ा" यह भी स्पष्ट प्रमाणित होता है । प्राचार्य शुभचन्द्र प्रथम पर प्रभाव (१००३--११६८ ईस्वी) ये परमारवंशीय राजा मुन्ज के भाई तथा शतकत्रय के कर्ता-भतृहरि के बड़े भाई थे। ये राजा सिंह के पुत्र थे । भतु हरि को संबोधनार्थ शुभचन्द्र ने ज्ञानार्णव नामक ग्रन्थ को रचना की थी। आप पदमनंदिपंचविशतिकार प्राचार्य पद्मनंदि के गुरु थे। आपका समय ईस्वी १००३ से ११६८ के बीच का था । शुभचन्द्र पर आचार्य अमृतचन्द्र का प्रभाव था, जिसके प्राधार निम्नानुसार हैं - शुभचन्द्र ने अपने ग्रन्थ ज्ञानार्णव में अमृतचन्द्र के ग्रन्थ से १ पद्य उद्धृत किया है। यह उद्धरण १४ प्रकार के अंतरंग परिग्रहों का विवरण प्रस्तुत करने हेतु "उक्त च" लिखकर प्रस्तुत किया है। उक्त पद्य अभूलचन्द्र के पुरुषार्थ सिद्धयुपाय नन्ध का है । पद्य इस प्रकार है - मिथ्यात्व - वेदराग दोषा हास्यादयोऽपि षट् चैव । चत्वारश्च कषायश्चतुर्दशाभ्यन्तरा ग्रन्थाः ॥ १. समयसार कलश, क्रमांक २०० २. पद्मनंदिपंचविशतिः, एकत्वसप्तति अधिकार, पद्य नं, ५४ ३. जनेन्द्र सिद्धान्तकोश, चतुर्थ भाग, पृष्ठ ४१ ४, ज्ञानर्णत सगंषोडपा, पद्य क्रमांक ६ ५. पुरुषार्थ सिद्ध युपाय, पद्य नं. ११६
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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