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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव । उत्पत्ति संभव नहीं, अतः मांसभक्षी को हिंसा अनिवार्य रूप से होती है ।' इसी बात की पुनरावृत्ति अमितगति ने भी की है। अमृत चन्द्र ने रात्रि भोजन करने में हिंसा होना अनिवार्य लिखा है तथा उसे छोड़ने का उपदेश दिया है । इशी का समर्थन तथा अनकरण अमितति ने भी किया है। उनके ग्रन्थ 'अमितगतिथावकाचार" की रचना का मूलाधार आचार्य अमृतचन्द्र का पुरुषार्थसिद्ध्युपाय है। इस प्रकार स्पष्ट रूप से आचार्य अमतचन्द्र का प्राचार्य अमितगति द्वितीय पर भी व्यापक तथा गहन प्रभात्र दृष्टिगोचर होता है । प्राचार्य जयसेन (धर्मरत्नाकर कर्ता) पर प्रभाव (REE ईस्वी)लाड़बागड़ संघ की गुर्वावरिल के अनुसार जयसेन भावसेन के शिष्य तथा ब्रह्मसेन के गुरु थे। आपकी कृति धर्मरत्नाकर है। प्रापका समय ६६८ ईस्वी है। पाप प्राचार्य अमृतचन्द्र से विशेष प्रभावित थे। आपने अपने ग्रन्थ धर्मरत्नाकर में आचार्य अमुतचन्द्र के पुरुषार्थसिद्धयुपाय के १२४ पद्य ज्यों के त्यों उद्धृत किये हैं। वैसे तो पुरुपार्थसिद्धयफाय के पद्यों को अमृतचन्द्र के परवर्ती श्रावकाचार ग्रन्थ प्रणेता विद्वानों प्राचार्यों ने बहुत बड़ी संख्या में अवतरित किया है, परन्तु जयसेन ही इस अवतरण के कार्य में सबसे आगे हैं। उन्होंने सम्पूर्ण ग्रन्थ के आधे से अधिक भाग को अपने ग्रन्थ में ज्यों का त्यों सम्मिलित किया है। पुरुषार्थसिद्धयपाय ग्रन्थ में कुल २२६ पद्य है। जयसेन ने अमतचन्द्र कृत पद्यों को कहीं "उक्तं च" लिखकर प्रमाण रूप में प्रस्तुत किया है, तो कहीं पर विषय का निरूपण अमृतचन्द्र के ही मूलपद्यों को उद्धृत करके किया। किसी किसी अध्याय १. पुरुषार्थगि युपाय, पद्य ६५ २. यमित श्रावनाचार, अध्याय ५, पथ १ ३. गुरुयार्थमिध्युपाय. १२६ वा गद्य ४. नमित्त गति श्रावकाचार, अध्याय ५. पय ८०, ४१, ४२ ५. जैनेन्द्रसिद्धांतकोश, भाग २, पृष्ट ३२४ ६. पुरुषासिन्युपाय से उधत निम्नानुसार है -- २३, २५, २६, २९, ३०, ४२ से १६, ५१ से ५६, ५८ से ६०, ६४, ६६, ६७, ६६, ७० से ७३, ७५ से ६०, ६२ रो १०१, १०३ रो १०५, १०७, १०८, १११ से १३४, १३५ में १४०, १४२, १४३, १४५, १४६ से १६३, १६५, १६५, १६६, १७२, १७३, १७५ से १७६, १८५, १८८ से १६१, १९४, १६८
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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