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। आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृख
४. अनृतवचन और उसके भेदों का जिस प्रकार से अमृतचन्द्र ने कथन किया है', अमितगति ने भो उसी प्रकार से अनृतवचन के चार भेद करके निरूपण किया है।
५. जिस प्रकार अमृतन्चद्र ने धन को बाह्यप्राण तथा घनहरण करने वाले को प्राणहर्ता बनाया है, उसी प्रकार अमितगति ने भी निरूपण किया है। उनके इस तरह के साम्यदर्शक पद्य निम्नानुसार हैं -
अर्थानां य एते प्राणा एते बहिश्चराः पुसाम् । हरति स तस्य प्राणान् यो यस्य जनो हत्यर्थम् ।। (अमृतचन्द्र )३ यो यस्य हरति वित्तं स तस्य जीवस्य जीवितं हरति । आश्वासकर बाह्य जीवानां जीवितं वित्तम् ।। (अमितगति)
६. व्रतों के अतिचारों के वर्णन में अमितगति ने प्रायः उन्हीं पद्यों को अवतरित किया, जिनकी रचना अमृतचन्द्र ने की। अन्तर केवल कुछ शाब्दिक परिवर्तन मात्र का है। उदाहरणार्थ दो पछ प्रस्तुत किये जाते हैं
प्रतिरूपकव्यवहारस्तेन नियोगस्तदाहृतादानम् । राजविरोधातिकम होनाधिक मान करणे च ।। (अमृतचन्द्र) व्यवहार: कृत्रिम कस्तेन नियोगस्तदाहृतादानम् । ते मानवपरीत्यं विरुद्धराज्य व्यतिक्रमणम् ॥ (अमितगति )२
७. अमृतचन्द्र ने हिंसा त्याग के इच्छुक को सर्वप्रथम मद्य, मांस, मधु तथा पांच उदुम्बर फलों के त्याग वा विधान लिखा है। अमितगति ने भी इसी नियम को दोहराया है। इसी तरह मांस भक्षण के दोष बताते हुए अमृतचन्द्र लिखते हैं कि प्राणियों के घात किये बिना मांस की
१. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय ६२, १३, १४, १५, १६, १७, १८ वा पद्य २. अमितगति श्रावकाचार, अध्याय ६, पद्य प्रमांक ४८ से ५५ तक ३ पुरुषार्थ सिद्ध्वुपाय, पद्य क्रमांक १०३ ४. अमितगति श्रावकाचार, 'पद्य ६१, अध्याय ६ ५. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, पद्य नं. १८५ ६. प्रमितगति श्रावकाचार, पच नं. ५, अध्याय १ ७, पुरुषार्थसिद्ध्युधाय, ६१ वा पद्य ८. अमितगति श्रावकाचार, अध्याय ५, पद्य नं. १