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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ] __ [ १७१ रसजानां च बहूनां जीवानां योनिरिष्यते मद्यम् । मचं भजतां तेषां हिंसा संजायतेऽवश्यम् ॥ (अमृतचन्द्र)' ये भवन्ति विविधाः शरीरिणस्तत्र सूक्ष्म बपुषो रसाङ्गिकाः । तेऽखिला झटिति यान्ति पंचता, निन्दितस्य सरकस्य पानतः ।। (अमितगति) इतना ही नहीं, प्राचार्य अमितगति ने आचार्य अमृतचन्द्र द्वारा प्रयक्त शब्दों तक को ज्यों का त्यों ग्रहण किया है। अमृतचन्द्र ने शराब के लिए "सरक" शब्द का प्रयोग किया है, उसी शब्द का प्रयोग अमितगति ने भी किया है। अन्य श्रावकाचारों में उक्त सरक पद का प्रयोग नहीं मिलता। २. अमृतचन्द्र ने पांच उदुम्बर तथा तीन मकारों के त्याग करने पर जिनघम की देशना का पात्र होना लिखा है। अमितगत ने भी उक्त कथन को दुहराया है। उक्त प्राशय वाले तथा साम्य प्रगट करने वाले दोनों आचार्यों के पद्य इस प्रकार हैं - अष्टाव निष्ट दुस्तर दुरिता ग्रत् नान्यभूति परिवर्य । जिनधर्म देशनाया भवन्ति पात्राणि शुद्धधियः ।। (अमृतचन्द्र) ५ आदावेव स्फुटमिह गुणानिर्मला धारणीयाः। पार सि व्रतमपमलं कुर्वत। श्रावकीयम् ।। (अमितगति) अमृतचन्द्र ने हिंसक, दुखी तथा मुखी को मारने का निषेध किया है", अमितगति ने भी वैसा ही निषेधरून निरूपण किया है । १. पुरुषार्थसिद्ध युपान, पञ्च मात्र. ६३ २. मिगति श्राववाचार - (६ वां पद्य अध्याय ५ वा) ३. पुरुषाचं सिद्ध ग्रुपाय पद्य गांक ६४ ४. जननंदेश, शोधांक ५ अक्टूबर १९५६, पृष्ठ १७३ ५. पुरुषार्थसिद्ध युपाय, पद्य क्रमांक ७४ । ६. अमितगति श्रावकाचार, पद्य नं. ७३, अध्याय ५ ७. पुरुषार्थसिद्ध युपाय ८३, ८५, ८६ बां पद्य ८. अमितगति श्रावकाचार ६.६२, ३६, ४० वा पद्य
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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