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________________ Saini १५८ j [ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तितव एवं कर्तृत्व (इन्द्रयच्चा छंद द्रव्यस्य सिद्धौ चरणस्य सिद्धिः । द्रन्यस्य सिद्धिश्चरणस्य सिद्धौ ॥ बुद्धति कर्माविरता: परेऽपि, द्रव्याविरुद्धं चरणं चरंतु ।।' इसके अतिरिक्त मुग्याने श्रावकों के तथा गौणपने मुनियों के आधार का निरूपक 'पुरुषार्थसिद्धयपान' नामक श्रेष्ठ ग्रन्थ भी इसका सबल प्रमाण है कि आचार्य अमृतचन्द्र एक गम्भीर सिद्धान्तज्ञ थे। प्राचार्य अमृतचन्द्र ग्याकरणज्ञ के रूप में संस्कृत साहित्य की विभिन्न विधाओं में व्याकरण का स्थान सर्वोपरि है । अन्य विधाओं के विद्वान मूलभ हैं, परन्तु व्याकरण में दक्ष विद्वान् इने-गिने ही होते हैं, कारण कि व्याकरण एक अत्यंत क्लिष्ट तथा शुष्क विषय माना गया है। उसमें पारङ्गतता सभी को नहीं होती। व्याकरण की दक्षना बिना कोई भी विद्वान् किसी भी भाषा का अधिकारी विद्वान नहीं हो सकता। आचार्य अमृतचन्द्र का व्यक्तित्व अपने अनेक पक्षों में एक पक्ष व्याकरण विशेषज्ञ का भी समाहित किये हैं। उनकी व्याकरणज्ञता के कुछ आधारों का उल्लेख किया जाता है। १. आचार्य अमृतचन्द्र अपनी टीकानों में कभी-कभी एक-एक पद की व्याख्या समारा विग्रह शैली द्वारा करते हैं। वे अनेक प्रकार के समासविग्रह करके पद-शब्द में निहित भाव को प्रकट करते हैं। उदाहरण के लिए एक स्थल पर "अणुमहान्' पद की व्याख्या करते हुये लिखने हैं-- "अणवोऽत्र प्रदेशा मूर्ताऽमूश्चि निविभागांशास्तैः महान्तो ऽणुमहान्तः ।" अर्थात यहां अणु का प्रदेश मूर्त और अमूर्त निविभाग (छोटे-छोटे) अंश हैं, उनके द्वारा महान् होने से अणुमहान है अर्थात् प्रदेशप्रचयात्मक होने से अणुमहान है, इस प्रकार उन पांचों (जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म तथा आकाश) द्रव्यों के कायपना (बहुप्रदेशीपना) सिद्ध हुआ।' बे इसी पद की व्याख्या पुनः करते हुये लिखते हैं-"अणुभ्यां महान्त इति व्युत्पत्या द्वयणु कपुद्गलस्कंधानामपि तथाविधत्वम् ।" अर्थात् दो अणुओं (प्रदेशों) द्वारा जो महान् है वह अणुमहान है। इस प्रकार व्युत्पत्ति द्वारा द्वयणुक १. प्रवचनसार गाथा २०० की टीका, पद्य नं १२ तथा १३ २. पंचास्तिकाय गाथा ४ की टीका
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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