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। आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
१०. उन्होंने अपनी टोकामों में अनेक सैद्धांतिक युगलों का उल्लेख एवं स्पष्टीकरण किया है। उनमें कुछ युगलों के नाम इस प्रकार है -
ज्ञेय-ज्ञायक, बोध्य-बोधक, दाह्य-दहन, धर्म-धर्मी, वाच्य-वाचक, ज्ञान-जानी, ग्राह्य-ग्राहक, विद्यार्य-बिकारवा, आस्राव्य-यास्रवक, संवार्यसंवारक, निर्जर्य-निज रक, बंध्य-बंधक, मोच्च-मोचक, साध्य-सावक, बध्य-घातक, प्रमेय-प्रमाण, कर्ता-कर्म, पुण्य-पाप, भोक्ता-भोग्य, भाव्यभावक, परिणाम-परिणामी, स्व-स्वामी संबंध, व्याय-व्यापक, प्रतिपाद्यप्रतिपादक, निषेध्य-निषेधक, प्राचार-प्राधेय, प्रकरण-प्राकरणिक, चेत्यचेतक, उत्पाद्य-उत्पादक, कार्य-कारण, उपाय-उपेय, दर्शन-दष्टा, ज्ञानज्ञाता, चेतना-चेतयिता, श्वत्यः-श्वेतयित्री, बेद्य-बैदक, साध्य-सिद्धि' विषय-विषयी, विशेषण-विशेष्य, अभिघेय-अभिघान, लक्ष्य-लक्षण, दंडबण्डी, सिद्धि-सिद्धिमत्, निष्पन्न-निष्पत्तिमत्, विधीमान-विधायिका, कार्यकारण, लिंग-लिंगी, वृत्ति-वृत्तिमान, ज्ञान-ज्ञेय, परिणम्य-परिणामक, उत्सर्ग-अपवाद, सामान्य-विशेष, दृष्टांत-दाष्टांत, अंग-अंगी, शेयतत्वजातृतत्व, बधक-मोचक, मेच क-अमेचक, एक-अनेक, तत्-असत्, अस्तिनास्ति, धन-धनी, लक्ष्य-लक्षण, शरीर-शरीरी, गुण-गुणी, त्याज्योपादान, हेय-उपादेय इत्यादि । इस प्रकार इतने सैद्धांतिक युगलों का प्रयोग एवं स्पष्टीकरण सामान्य सिद्धांतवेता नहीं अपितु विशेष सिद्धांतज्ञ ही कर सकता है।
अन्यत्र प्रतिक्रमण, आलोचना तथा प्रत्यास्थान कल्पों का विवेचन ४६-४६ भंगों द्वारा किया गया है। कुत, कारित तथा अनुमोदना के ७ भंग बनाये तथा मन, वचन और काय के ७ भंग' बनाये तथा उन
१. समयसार गाथा क्रमांक ६, ७, ८, १०, ३१. १०, ७४, २३, ८५ २०७, ७५,
२७५, १६३, १९७, २६४, ३११, ४१५, (परिशिष्ट) २. प्रवचनमार गाथा ४०, ८५, ८६, १५, १०६, १२२, १४२, १२६. १६५,
१७४, १६१, १६६, २००, २१५, २३३, २४२, २७५, बी टोकाएं। ३. ममबसार गाथा ४२५ के बाद का परिशिष्ट तथा कलश क्रमांक २४८
से २५५ तक। ४. पंचास्तिकाप गाथा ६, ४७, १२७, १४५, १६१ इत्यादि की टीकाएं। ५. समयसार गाथ ३८७ से ३८९ की टीकाः-७ मंग इस प्रकार बनते हैं (१)
कृत (२) कारित (३) अनुमोदना (४) कृत-कारित (५) कृत अनुमोदना (६) कारित मनुमोदना (७) कृतकारित अनुमोदना । इसी तरह (१) मन (२) बचन (३) काय (४) मन वचन (५) मन काय (६) वचन काय (७) मन वचन काम।