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________________ १५० ] [ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व ज्ञेयीकुर्वन, ज्ञानीकुर्वन्, आत्मीकुर्वन् अकार्ष, प्रचोकरं कुर्वन्तम् करोमि, कारयामि, करिष्यामि, कारयिष्यामि , कृत, कारित' इत्यादि प्रयोग, "दृश'' धातु के पश्यति, दृष्टु. दृष्टव्यं, दृष्टः, दर्शन, दृष्टत्वं, दृष्टार, युद्ध मन्द, दृारा प शि इस दि प्रमोग तथा “सिध्" धातु के प्रसिद्धः, प्रसिद्धिः, प्रसिद्ध्या, प्रसिद्ध्यति, प्रसाधनीयम्, प्रसिद्धन, प्रसाध्यमानत्वात्, प्रसाध्यमान:1 इत्यादि प्रयोग उनकी दक्षता के प्रमाण हैं । वे उपसर्ग परिवर्तन कर अर्थ रिवर्तन करने में भी कुशन थे, उदाहरण के लिये राधः पद में विभिन्न उपसर्ग प्रयोग कर अपराधः, सापराधः, निरपराधः, प्राराधन, आराधक १५ आदि शब्दों का निर्माण हुआ है तथा जर् पद के निर्जीर्य, निर्जरक.१२, निर्जीमाणः, निर्जीर्णः निर्जरा, अजीर्ण:१३ इत्यादि प्रयोग उनकी टीकाओं में मिलते हैं। उनकी टीकाओं नथा मौलिक रचनाओं में प्रायः अधिकांश प्रचलित उपसर्गों का उपयोग१४ तथा अव्ययों का प्रयोग हुआ है। एक स्थल पर तो एक ही गाथा की टीका में बत्तीस १५ प्रकार के विभिन्न अव्ययों के प्रयोग से उनकी संस्कृत भाषाविज्ञता का परिचय प्राप्त होता है । अमृतचन्द्र की टीकाओं तथा १. समयमार गाथा २०० की टीम २. वहीं, गाथा, २८७ से २८६ तक की दीका पृष्ठ ५२३ ३. नहीं, एट ५२८ ४. वही, पृष्ठ ५३१ ५. वही, पृष्ठ ५२३ ६. वही, माथा १७२ की टीना ७. वही, गाथा २६६ ८. वही, गाथा ५ ९. वही, परिशिष्ट १ स्याहादाधिकार-पृष्ठ ५८६ १०. वहीं, परिशिष्ट १ पृष्ठ ५५६ ११. वही, गाथा ३०४-३०५ की टीका १२. वही, गाथा १३ टीका १३. वही, गाथा १६४ १४. विभिन्न उपसर्गों में मुख्य है-"वि, अन्, सं, प्रति, प्रा. अव्, अ, उप, परि, प्र, मन् अधि, उप, अन्तः, निः, सु. दुः, अभि, स, सह १५. ये बत्तीस प्रत्यय इग प्रकार हैं-हि, ततः, खलु, अपि, इव, सद्यः, अलं, स्वस्ति, इति, किल, च, तत्र, एव, त, पुनः अन्यथा, तथा, पुनः पुनः, अध, मनाक्-मनाक् अनवरतं, मुह मुहु, नितरां, कदाचित् किचित्, बहुधा, सुष्य नितांत, सुचिरं, प्रत्र, यथा, केवल । (पंचास्तिकाव गाथा, १७२ की समयव्याख्या टीका)
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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