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________________ १४६ ] [ प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व न्यायों के उल्लेख एवं प्रयोग से उनको न्याय विज्ञता का परिचय मिलता है। उनकी टीकाएँ तथा वस्तुस्वरूप की सिद्धि हेतु प्रयुक्त नैयायिक शब्दावलि भी उनके ताकिक तथा नैयायिका रूप व्यक्तित्व के श्रेष्ठ प्रमाण हैं। उन्होंने स्वमत मंडनार्थ तथा परमत खण्डनार्थ प्रयुक्त न्यायशास्त्रोक्त पदों का प्रचुरमात्रा में प्रयाग किया है, जो अमनचन्द्र को प्रखर ताकिक तथा कुशल न्यायवेत्ता सिद्ध करते हैं। ताकिक तथा नैयायिक का रूप भी आचार्य अमृतचन्द्र के विशाल व्यक्तित्व का एक पहलू है। प्राचार्य अमृतचन्द्र भाषाविद् के रूप में आचार्य अमृत चन्द्र के बहुमुखी व्यक्तित्व में उनका भाषाविद् का रूभी अप्रतिम है बे प्राकृत तथा संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। संस्कृत भाषा पर ती उनका अस्वलित आधिपत्य था। उनकी पंचा साहित्यकार मावि वाणभट्ट के संबन्ध में 'वाणो बाणो बभूवेति" यह उक्ति चरितार्थ है । आचार्य अमृतचन्द्र की संस्कृत भाषा की प्रौढ़ता, गंभीरता, भावार्थवाहिता तथा सुन्दरता को निहार कर उपयक्त उक्ति अमृतचन्द्र के व्यक्तित्व में भी सार्थक एवं ज्वलंत प्रतीत होती है। वे जेन संद्धांतिक शब्दों तथा साधारण संज्ञाओं की भी व्याख्या करने में नहीं हिचकते। वे सारगभित संकेतों तथा संक्षिप्त व्याख्या को जानते थे । .. ... .-... - १. याग्निक शब्दावलि के प्रयोग दो प्रकार के हैं वस्तुस्वरूप के विपरीत मत खण्डनार्थ तथा वस्तुस्वरूप की सिद्धि (मण्डनार्थ प्रयुक्त शब्द) । खनार्थ प्रयुक शब्दों में प्रसिद्ध, अनुपपत्ते:, अापत्तिः, प्रसंगात, कुतस्त्यात सिद्धि, प्रत्याख्यातम्, उत्थाप्यते यादि प्रमुख हैं तथा मण्डनार्थ प्रयुक्त शाब्दों में साक्यति, सिद्ध्यति, आयातम्, निष्पन्नम्, सिद्धम्, न्याय्यग, अस्तु, निश्चयः, निश्चिनोति, उपपन्नम्, अवश्यं, अनुसत ज्य, व्यवस्थापमितध्यम, निपचीयन्ते, सिद्धांतयति, प्रतिपभम्, अलमतिविस्तरण, सावितम्, अनेन, व्याख्मातम्, उपपत्तिः, प्राम्नातम्, साकल्येन, सिद्धिः, स्थिता, प्रसजेत्, साध्यसिद्धि, अतिष्ठते, निश्चितम् सुष्टपरीक्षय, न्याय्य एव, युक्ता प्रज्ञप्तिः, इति निश्चयसिद्धांतः, प्रसाध्यम्, संपद्यते, मायबलेन एतद्मापातम्, प्रतिनियमः, प्रति नियमः, करण, प्रत्यासत्ति, निश्चिन्वन्, मीमास्यते, प्रसक्ती, दण्डनीतयः इत्यादि मुख्य हैं।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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