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________________ व्यक्तित्व तथा प्रभाव ] [ १४५ करावलोवानन्यायेन परमेश्वरमामानं ज्ञात्वा श्रद्धायानचर्य च सभ्यर्गकास्मारामो भूतः स खल्वमात्मात्मप्रत्यक्षं चिन्मात्रंज्योतिः, समस्त क्रमाक्रम प्रवर्तमान व्यावहारिकभावैश्चिन्मात्राकारेणाभिद्यमानत्वादेकः । 1 इसी तरह "जो पूर्वत्र जो, जो ही है" न्याय का उल्लेख करते हुए लिखा है कि मिथ्यात्वादि गुणस्थान पौद्गलिक मोहकर्म की प्रकृति के उदयपूर्वक होते होने से सदा ही अचेतन है, क्योंकि कारण जैसा ही कार्य होता है -- ऐसा समझकर "जी पूर्वक होने वाले जो जो हैं, वे जी ही होते हैं" इसी न्याय से वे कर्म पुद्गल ही है। यथा - "मिथ्यादृष्ट्यादीनि हि पौदगलिक मोहकप्रकृर्मतिविपाकपूर्वकत्वे सति नित्यमचेतनत्वात् कारणान विधायीनि कार्याणीति कृत्वा ययपूर्वका यवा यवा एवेति न्यायेन पुद्गल व नतु जीबः ।"३ एक स्थल पर "टकोत्कीर्ण न्याय" द्वारा ज्ञान की नित्यता तथा क्षायिकपने के माहात्म्य को दर्शाया है । वे लिखते हैं - "यत्तु युगपदेव सर्वार्थानालम्ब्य प्रवर्तते ज्ञाने तकोत्कीर्णन्यायावस्थित समस्तवस्तुज्ञेयाकारतयाधिरोपित नित्यत्वे अन्यत्र "अंजनचूर्णसमुद्गक न्याय" के आधार पर सभी द्रव्यों के निवास के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण किया है यथा - "कालजीवपुद्गलानामित्येकद्रव्यापेक्षया एकदेश अनेकद्रव्यापेक्षया पुनरजनचूर्णपूर्णसमुद्गकन्यायेन सर्वलोक एवेति ।" इस तरह अनेक १. समयसार गाथा ३८ की टीका का अर्थ - जो अनादि मोह रूप प्रज्ञान से उन्मत्तता के कारण प्रत्यंत अप्रतिबुद्ध था और विरक्तगुरु से निरन्तर समझाये जाने पर जो किसी प्रकार रामझकर, सावधान होकर "जसे कोई पुरुष मुट्ठी में रखे हुए सोने को भूल गया हो और फिर स्मरण करके उस सोने को देखें" इस न्याय से, अपने परमेश्वर प्रात्मा को भूल गया था, उसे जानकर, उसका श्रद्धानकर और उसका याचरण करके जो सम्यक प्रकार से एक यात्माराम हुँमा, वह मैं ऐसा अनुभव करता हूँ कि मैं चतन्य ज्योति रूप आत्मा है कि जो मेरे ही अनुभव से प्रत्यक्ष ज्ञात होता है, चिम्मान भाव के कारण मैं समस्त अमरूप तथा अमरूप प्रवर्तमान व्यावहारिक भावों से भेदरूप नहीं होता इसलिए मैं एक हूँ ......" २. समयसार गाथा ६८ की टीका ३, प्रवचनसार गाथा ५१ को टीका ४. प्रवचनसार गाथा १३६ की दीका
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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